पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२४५

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२३७. इतिहास] के अमात्य चंपक का पुत्र था...... इसके पीछे जोनराज ने सन् १४१२ ई० में राजावली बनाकर कल्हण से लेकर अपने काल तक के राजाओं का उसमें वर्णन किया। फिर उसके शिष्य श्रीवरराज ने १४७७ ई० में एक ग्रंथ और बनाया। अकबर के समय प्राज्यभट्ट ने इस इतिहास का चतुर्थ खंड लिखा।” यद्यपि यह समस्त ग्रंथ उस समय प्राप्त हो गया था, पर उसके केवल छः सर्ग ही का अनुवाद उस समय तक प्रकाशित हुआ था। इस तथा अन्य कई फारसी और अंग्रेजी के ग्रंथों के आधार पर भारतेन्दु जी ने इस ग्रंथ को रचना की है। भूमिका के अनंतर वर्तमान राजवंश का संक्षिप्त परिचय देकर राजतरंगिणी की समालोचना की गई है। इसके बाद श्री हर्षदेव के विषय में कुछ लिखकर एक लम्बी तालिका दी है, जिसमें द्वापर काल के आदि-गोन राजा से अपने समय के महाराज रणधीर सिंह तक के २१३ नरेशों का वर्णन दिया है। इसमें पुरातत्वज्ञ टायर, कनिंगहम और विलसन के मतों के अनुसार अलग अलग समय प्रायः बहुत से राजाओं के दिए गए हैं । इस ग्रंथ के लिखने में भारतेन्दु जी ने बहुत मनन तथा परिश्रम किया था और इसी से यह ग्रंथ उन्हे विशेष प्रिय था। महाराष्ट्र देश का इतिहास छोटी-सी दश पृष्ठों की एक पुस्तिका, मात्र है। इसके भी दो भाग हैं, प्रथम में शिवाजी और दूसरे में पेशवाओं का वृत्तान्त है। यह संक्षिप्त इतिहास भी अशुद्धियों से रहित नहीं है, पर उस समय के लिये वही बहुत था । आज ग्रांट डफ़ के 'मराठों के इतिहास' का महत्व केवल उसकी प्राचीनता मात्र ही में रह गया है। तीसरी रचना 'बूंदी का राजवंश' है। यह भी छोटी-सी पुस्तिका है और इसमें बूंदी की हाड़ा राजवंशावली दी गई है।