पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२४६

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२३८ [ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अंत में कोटा की शाखा की नामावली भी दे दी गई है । चौथी पुस्तक 'रामायण का समय' में 'वे ही बातें दिखाई जाती हैं जो वास्तव में पुरानी हैं पर अब तक नई मानी जाती हैं, और विदेशी लोग जिनको अपनी कह कर अभिमान करते हैं।' वाल्मीकीय रामायण के प्रत्येक कांड से कुछ-कुछ बातें, जैसे शतघ्नी, श्री कृष्ण पूजा की प्राचीनता आदि चुनकर दिखलाया है कि ये सब उक्त रामायण की रचना के समय में वर्तमान थीं। इस ग्रन्थ का महत्व पुरावृत्त-सम्बन्धी है। इसके अनंतर सं० १९२८ में 'अग्रवालों की उत्पत्ति' तथा सन् १९७३ ई० में 'खत्रियों की उत्पत्ति' लिखी गईं । इन दोनों में अपनी जानकारी के सिवा अन्य मित्रों की सम्मतियाँ भी संगृहीत कर दी गई हैं । ये दोनों पुस्तकें पहिले छोटे साइज़ में मेडिकल- हाल से प्रकाशित हुई थीं। पहिली के बाद को परिवर्धित होने पर कई संस्करण निकले। दूसरी का बा० रामकृष्ण वर्मा ने प्रतिवाद किया था, जिसका भी 'खत्रियों की उत्पत्ति' ही नाम है। इसके अनंतर भारतेन्दु जी ने अन्य कई सज्जनों की सम्मतियाँ भी अपनी रचना में सम्मिलित कर तथा 'हरिश्चन्द्र मैगजीन से उद्धृत कर, जिसमें यह पहिली बार लेख-रूप में प्रकाशित हुआ था, पुस्तकाकार छपवाया था। बादशाह-दर्पण में मुहम्मद के जन्म से भारत में मुसल्मानी राज्य के अस्तकाल तक का इतिहास संक्षेप में लिखा गया है। इसमें एक बड़ी तालिका दी गई है, जिसमें सुल्तानों तथा बादशाहों के पिता-माता का नाम, जन्मवर्ष, राजगद्दी तथा मृत्यु की 'अब- जद' के अनुसार फारसी तारीख निकालने के शैर आदि प्रायः सभी ज्ञातव्य बातें दी गई हैं, जिनसे इतिहास-प्रेमियों का बहुत कुछ कुतूहल शांत होता है। दास, खिलजी, तुग़लक, सैयद,