पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२४७

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. इतिहास] २३६ तथा लोदी वंश वर्णन की तालिका बहुत संक्षिप्त है पर तैमूरिया वंश की, जो सैयद अहमद के बनाए चक्र के आधार पर है, विशेष विस्तृत है। उस चक्र में तैमूर से शाह आलम तक का पूरा विवरण दिया गया है और बाद का बहादुरशाह तृतीय तक का वृत्तांत भारतेन्दु जी के मातामह राय खिरोधर लाल ने संगृ- हीत किया था। इस ग्रन्थ की भूमिका में भारतेन्दु जी लिखते हैं कि "आशा है कि कोई माई का लाल ऐसा भी होगा जो बहुत- सा परिश्रम स्वीकार करके एक बार अपने बाप-दादों का पूरा इतिहास लिख कर उनकी कीर्ति चिरस्थायी करेगा।" पर यह आशा आज भी प्रायः उसी प्रकार की आशा मात्र बनी हुई है । ग्रन्थ के अंत में एक उपष्टम्भक है, जिसमें काश्मीर के एक मंदिर पर सम्राट अकबर की खुदवाई हुई आज्ञा की तथा काशी में औरङ्ग- जेब द्वारा मंदिर न तोड़ने के आज्ञापत्र की प्रतिलिपियाँ दी गई हैं। औरङ्गजेब के इस थोथे आज्ञापत्र के बाद ही उसीके आज्ञानु- सार कृत्तवास का मंदिर तोड़ कर उस पर 'खुदा का घर' बनवाया गया था। इस पर के लेख को भी नकल दी गई है । यह पुस्तक पहिली बार सन् १८८४ ई० में बड़े साइज़ डेमी चोपेजी में मेडि- कल हाल प्रेस में छपी थी। 'उदयपुरोदय' मेवाड़ के प्राचीन काल का इतिहास है। यह टॉड कृत राजस्थान, फ़िरिश्ता आदि कई ग्रन्थों के आधार पर लिखा गया है। इसकी टिप्पणी आदि से भारतेन्दु जी का पुरा- वृत्तानुसंधान-प्रेम तथा मननशीलता प्रगट होती है। 'पुरावृत्त-संग्रह' में प्राचीन प्रशस्तियाँ, दानपत्र, शिलालेख आदि मूल और अनुवाद सहित संगृहीत हैं । आरम्भ में अकबर की प्रशंसा में कछवाहा रामसिंह रचित कुछ श्लोक एक प्राचीन प्रवि से उद्धृत किए गए हैं। वह पत्र, जो औरङ्गजेब को जजियो