२४४ [ भारतेन्दु हरिश्चन्द्रः अनुसार इसके लेख भी रखते थे। समाचारावली में अनेक पत्रों से समाचार भी संकलित होते थे। उस समय इस पत्र का प्रजा तथा राजा दोनों ही ने बड़ा आदर किया। सरकार ने इसकी सौ प्रतियाँ खरीदी और हिन्दी भाषा प्रेमी, जिनकी संख्या अल्प थी, इसकी हर संख्या के लिये टकटकी लगाए रहते थे। भारतेन्दु जी के सभी मित्रगण इसमें लेख देते थे, जिनमें स्वर्गीय गोस्वामी श्री राधाचरण जी, बाबू गदाधर सिंह, लाला श्रीनिवास दास, बा० ऐश्वर्य नारायण सिंह, बा० सुमेर सिंह साहिबजादे, बा० नवीनचन्द्र राय, पं० दामोदर शास्त्री, पं० बिहारीलाल चौबे, पं० बिहारीलाल जानी इत्यादि प्रसिद्ध लेखक थे। समय पर पत्र न निकाल सकने तथा पं० चिंतामणि धड़फल्ले के आग्रह से बा० हरिश्चन्द्र ने इस पत्र को उक्त पंडित जी को प्रकाशित करने के लिये दे दिया। पत्र समय पर प्रकाशित होने लगा, पर कुछ दिन बाद भारतेन्दु जी ने इसमें लेख देना छोड़ दिया, जिससे यह सत्ताहीन सा हो गया । इलबर्ट बिल का विरोध करने के कारण यह सबकी आँखों से गिर गया। सन् ५८८५ ई० में इसने अपने जन्मदाता के देहान्त पर एक कालम भी काला नहीं किया, जिससे उसी वर्ष इसका मुँह सदा के लिए काला हो गया। लाला श्रीनिवासदास जी ने सन् १८७४ ई० में दिल्ली से सदादर्श नामक एक पत्र निकाला, जो साप्ताहिक था। यह दो वर्ष चलकर सन् १८७६ ई० में कविवचन-सुधा में मिल गया। इसी वर्ष भारतेन्दु जी के उद्योग से बा० बालेश्वर प्रसाद बी० ए० ने काशी से काशी-पत्रिका निकालना आरम्भ किया, जो मेडिकल हॉल से पुस्तकाकार छपती थी। यह भी साप्ताहिक थी और इसकी शैली भी वही 'हरिश्चन्द्री' थी। इसमें भारतेन्दु जी की
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