पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२५३

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. हरिश्चन्द्र मैगजीन तथा चन्द्रिका] २४५ सत्यहरिश्चन्द्र, कर्पूरमंजरी आदि कई रचनाएँ प्रकाशित हुईं। यह पत्रिका आगे चलकर बिलकुल स्कूली हो गई। इनके सिवा भारतेन्दु जी ने आर्यमित्र, हिन्दीप्रदीप, भारतमित्र, मित्रविलास आदि कई पत्रों को प्रोत्साहन देकर प्रकाशित कराया था और इनमें कभी कभी लेख भी देते थे हरिश्चन्द्र मैगजीन तथा चन्द्रिका कविवचनसुधा के साप्ताहिक हो जाने पर उसी से संतुष्ट न रहकर सन् १८७३ ई०. के अक्टूबर महीने से भारतेन्दु जी ने उस समय के लिए एक अत्युत्तम मासिक पत्र 'हरिश्चन्द्र मैगजीन' नाम से प्रकाशित करना आरम्भ किया। यह डिमाई चौ-पेजी के २४ पृष्ठों में निकलता था । मैटर दो कालम में दिया जाता था। इस मैगजीन की केवल आठ संख्याएँ ही निकली और बाद को यही हरिश्चन्द्र चन्द्रिका के नाम से प्रकाशित होने लगी। इस मैगजीन में कई छोटे छोटे ग्रन्थ प्रकाशित हुए, जैसे हठी कृत राधासुधाशतक, भारतेन्दु जी का धनंजयविजय व्यायोग, बा० गदाधर सिंह की कादम्बरी, लाला श्री निवासदासकृत तप्तासंवरण नाटक आदि। पुरातत्व विषयक टिप्पणियाँ भी दी जाती थी। भारतेन्दु जी का पाँचवाँ पैगम्बर, मु० ज्वाला प्रसाद का कलिराज की सभा, मु० कमलासहाय का रेल का विकट खेल आदि लेख आज भी चाव से पढ़े जाते हैं। इसके कुछ पृष्ठों में अंग्रेजी भाषा के लेख भी प्रकाशित होते थे, जिनमें कई अच्छे हैं । शतरंज की चालें भी प्रकाशित हुआ करती थी। मैगजीन की समाप्ति पर सन् १८७४ ई० के जून से चन्द्रिका प्रकाशित होने लगी, जिसके शीर्ष पर नीचे लिखा श्लोक और 'छन्द छपता था- .