पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२५९

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२५२ [भारतेन्दु हरिश्चन्द्र प्रयत्न कर चुके थे। वारेन हेस्टिंग्ज के समय में बंगाल एशियाटिक सोसाइटी सर विलिअम जोन्स के सभापतित्व में स्थापित हुई, "जिसने संस्कृत तथा फारसी ग्रन्थों को विशेषरूप से प्रकाशित किया। मारक्विस वेलेजली के समय फोर्ट विलियम कॉलेज स्थापित हुआ, जिसके प्रथम प्रिंसपल डा० गिलक्राइस्ट थे। इनके तथा इनके स्थानापन्न सज्जनों के निरीक्षण में लल्लूलाल जी आदि ने हिन्दी तथा उर्दू के कई गद्य ग्रन्थ तैयार किए थे। लॉर्ड मिंटो ने इस कॉलेज की इमारत बनवाई तथा नदिया और तिरहुत में संस्कृत पाठशालाएँ स्थापित करने का आयोजन किया। मार- क्विस ऑव हेस्टिंग्ज के समय में पुराना चार्टर सन् १८१३ में बदला गया था और उसमें केवल एक लाख रुपया वार्षिक 'साहित्य की उन्नति तथा देशीय विद्वानों के उत्साह-वर्धन और भारत के बृटिश राज्य के निवासियों में विज्ञान का ज्ञान प्रस्फु- टित करने के लिये स्वीकार किया गया था। यह स्वीकृति भी उस समय बड़े तर्क-वितर्क पर मिली थी। इसी प्रकार ईस्ट- इंडिया कम्पनी की ओर से कलकत्ते में हिन्दो तथा उर्दू के गद्य ग्रन्थों की रचना का जो प्रबन्ध हुआ था, वह भी क्षणिक था। हिन्दी के दो-चार ग्रन्थों से अधिक नहीं बन सके। विशेषता यही थी कि काव्यभाषा से भिन्न उन ग्रन्थों में खड़ी बोली ही रखने का प्रयास अधिक था। उसी समय इशा तथा मु० सदा- सुखलाल भी लखनऊ तथा प्रयाग में इसी खड़ी बोली को अपना कर रचना कर रहे थे। तात्पर्य यह कि भारत के उत्तरापथ में जन साधारण की बोली यही हो रही थी और शिक्षित लोग जमह जगह की ग्रामीण बोलियों का नगरों से एक प्रकार बहिष्कार कर रहे थे। श्रीरामपुर के पादरियों ने भी कई ग्रन्थ इसी समय शुद्ध हिन्दी में लिखे थे।