पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२६

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ध्वज-गण से अधिक सैनिक खोकर क्लाइव को लौट जाना पड़ा। 'नवाब की आज्ञा से रंजीतराय ने क्लाइव को लिख कर इस मारकाट का कारण पूछा और वहाँ से तीन मील हटकर दूसरे स्थान पर पड़ाव डाला। अमीनचंद तथा रंजीतराय के प्रयत्न से ६ फरवरी को संधि हो गई, जो अलीनगर की संधि के नाम से विख्यात है। इसके अनंतर क्लाइव ने १२ फरवरी को अमीनचंद को नवाव के पास स्वीकृत संधिपत्र के साथ भेजा और साथ ही यह भी कह दिया कि वह इस बात का पता लगा कि नवाव चन्द्रनगर पर चढ़ाई करने की उसे आज्ञा देंगे या नहीं। सिराजुद्दौला इस विषय पर मौन रह गया और 'मौनं सम्मति लक्षणं' के अनुसार १८वीं को क्लाइब चंद्रनगर की ओर ससैन्य बढ़ा। फ्रेंच ने पता पाते ही कई पत्र नवाब को भेजे, जिस पर नवाब ने अग्रद्वीप से जहाँ तक वह पहुँच चुका था, अँग्रेजों को चंद्रनगर पर चढ़ाई न करने का कठोर आज्ञापत्र भेजा। इसी समय वॉट्स अमीनचंद के साथ मुर्शिदाबाद को रवाना हुआ और १८वीं ही को हुगली में अमीन- चंद को पता चला कि च गवर्नर को नवाब ने एक लाख रुपये की सहायता दी है और हुगली के फौजदार नंदकुमार को अंग्रेजों के चढ़ाई करने पर फ्रेंच की सहायता करने की आज्ञा भेजी है। अमीनचंद ने नंदकुमार को समझा-बुझाकर अंग्रेजों के पक्ष में कर लिया, जिससे वह अपनी सेना सहित अंग्रेजी सेना के मार्ग से हट गया ।' ३१वीं को वॉट्स और अमीनचंद अग्रद्वीप पहुँच गए । सिराजुद्दौला ने उसी समय अमीनचंद को बुलाकर क्रुद्ध १० अप्रैल सन् १७५७ की सेलेक्ट कमेटी में अमीनचंद को इस कार्य के लिए विशेष धन्यवाद दिया गया था। १