पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२६५

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" 2 [ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बारी' था और इसका रचयिता अमीर खुसरो था । इसका समय विक्रमीय चौदहवीं शताब्दि ( जन्म सं० १३१२ और मृत्यु सं० १३६७ ) था। इसके दो और यों हैं- मुश्क काफूर अस्त कस्तूरी कपूर । हिंदवी आनंद, शादी और सरूर ॥ मूश चूहा, गुर्बः बिल्ली, मार नाग । सोजनो रिश्तः बहिंदी सूई ताग ।। इनमें आए हिंदी शब्द खड़ी बोली ही के हैं, और खुसरो खुद उस बोली को हिंदवी या हिंदी कहता है, उर्दू नहीं। खुसरो के तीन शताब्दि बाद इस भाषा को फारसी छंद शास्त्रादि का रंग देकर जिस साहित्य की दक्षिण में नींव पड़ी थी, उसका नाम- करण इस घटना के बहुत दिनों बाद उर्दू हुआ था । मुसल्मानी राजधानियों तथा बस्तियोंमें इसी हिंदवी या हिन्दी काबोलबाला रहने लगा और यह भाषा नागरिक भाषा या सभ्य बोलचाल की भाषा बनती चली गई। हिंदी काव्य-परंपरा में राजस्थानी, ब्रज तथा अवधी भाषाओं का प्राधान्य अभी अभी तक रहा है, पर इसका यह तात्पर्य नहीं है कि हिन्दी अर्थात् खड़ी बोली में कुछ कविता नहीं हुई है। हाँ, इस हिन्दी को प्रारम्भ में विशेषतः मुसल्मान कवियों ही ने अपनाया और ऐसा होना स्वाभाविक भी था क्योंकि वे किसी प्रकार की परंपरा में बँधे हुए नहीं थे। अस्तु, इस प्रकार यह हिन्दी काव्यभाषा में कुछ-कुछ प्रयुक्त होती आ रही थी। साहित्य का पद्य भाग पहिले और गद्य भाग बहुत बाद में निर्मित होता है, ऐसा नियम सा हो गया है। हिंदी साहित्य में भी यही हाल रहा है । ईसवी अठारहवीं शताब्दि के. पहिले का जो कुछ गद्य