पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२७

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स्वर से क्या भारतेंदु हरिश्चन्द्र पूछा कि अंग्रेज़ संधि की शर्तो को तोड़ना चाहते हैं। वॉट्स ने अमीनचंद से पहिले ही बहुत अनुनय-विनय किया था कि वे फ्रेंच की चढ़ाई आदि को एक बार ही अस्वीकार कर लेंगे और इसी के अनुसार अमीनचंद ने नवाब के दरबार के एक ब्राह्मण का पद स्पर्श करते हुए उत्तर दिया था कि 'अंग्रज़ कभी संधि भंग न करेंगे। उनके ऐसी सत्य-प्रिय जाति पृथ्वी पर नहीं है। वे जो कहते हैं वैसा ही करते हैं ।२ इस धर्म-शपथ से सिराज शान्त हो गया और मीर जाफ़र के अधीन जो सेना फ्रेंच की सहायता को वह भेज रहा था उसे नहीं भेजा। क्लाइव द्वारा प्रेषित इसी आशय का एक पत्र मिलने पर नवाब निश्शंक हो कर मुर्शिदाबाद लौट गया। वॉट्स और अमीनचंद चंद्रनगर पर चढ़ाई करने की आज्ञा लेने के लिए बरावर षड़यंत्र करते रहे। इसी समय पठानों का उपद्रव दिल्ली में बढ़ रहा था और उनके द्वारा बंगाल पर आक्र- मण होने की आशंका हो रही थी। इस ससय अंग्रेजों से सहायता लेने की इच्छा भी सिराज के हृदय में प्रबल हो रही थी। इस अनुकूल अवसर को क्लाइव ने जाने नहीं दिया और नवाब की सहायता के बहाने चंद्रनगर की ओर अग्रसर हुआ। सिराजुद्दौला की आज्ञा के अनुसार हुगली की सेना फ्रेंच के सहायतार्थ नंद- कुमार की अधीनता में चंद्रनगर पहुँच चुकी थी और राजधानी से दूसरी सेना राय दुर्लभ की अध्यक्षता में जा रही थी। अमीन- । चंद ही की मध्यस्थता से नंदकुमार चंद्रनगर से ससैन्य हट गए और मार्ग ही में उन्होंने राय दुर्लभ को भी रोक लिया । अंग्रेजों ने फ्रेंचों को परास्त कर चंद्रनगर पर अधिकार कर लिया। २ २५-२-१७५७ की सेलेक्ट कमेटी की प्रोसीडिंग्ज ।