पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२७१

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। २६४ [भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सत्य हरिश्चन्द्र में पुत्र रोहिताश्व की मृत्यु पर महारानी- शैव्या विलाप कर रही हैं। वाक्य छोटे-छोटे हैं और भाषा सरल बोलचाल की रखी गई है जो अत्यन्त स्वाभाविक है.... 'हाय बेटा! अरे आज मुझे किसने लूट लिया ! हाय मेरी बोलती चिड़िया कहाँ उड़ गई ! हाय अब मैं किसका मुख देख के जीऊँगी! हाय, मेरी अंधी की लकड़ी कौन छीन ले गया ! हाय, मेरा ऐसा सुन्दर खिलौना किसने तोड़ डाला ! अरे बेटा ! ते तो मरे पर भी सुन्दर लगता है। हायरे ! अरे बोलता क्यों नहीं ! बेटा जल्दी बोल, देख, माँ कब की पुकार रही है ! बच्चा ! तू तो एक ही दफे पुकारने में दौड़ कर गले से लपट जाता था, क्यों नहीं बोलता? इस प्रकार कई उद्धरण देने का एक कारण यह भी था कि कुछ लोगों के इस कथन में कि 'गद्य शैली को विषयानुसार बदलने का सामर्थ्य उनमें कम था' कहाँ तक सत्य है, इसकी परख हो जाय । हो सकता है कि जिस विषय पर उन्होंने एकाध लेख मात्र लिखा हो उसकी भाषा वे उसके अनुरूप न रख सके हों या रखने का ख्याल भी न किया हो पर इस प्रकार का विस्तृत कटाक्ष कर देना अनुचित ही है। पूर्वोक्त उद्धरणों से यह मालूम हो जाता है कि विषय के अनु- सार इन की भाषाशैली चाहे जिस प्रकार की रहे पर उन सबकी वाक्यावली सरल होती थी। वाक्यों के अन्वय जटिल तथा दुर्बोध नहीं होते थे। शब्दों के चुनाव में विशेषतर सरलता और सुग- मता ही का ध्यान रहता था। सबके ऊपर उनकी भाषा उनके भावों को विकसित कर उन्हें बड़ी मार्मिकता से प्रकट कर देती थी। यही कारण है कि इनके जीवन कालही में तत्कालीन प्रायः सभी प्रमुख सुलेखकों ने इस शैली को अपनाया था 1 ।