पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२९

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भारतेंदु हरिश्चन्द्र मीर जाफ़र से स्वीकृत होकर लौट आया और साथ ही मीर जाफर ने लिख भेजा कि यह सब षड्यंत्र अमीनचंद से छिपा रखा जाय । सेठों ने यह देख कर कि इस षड्यंत्र में यदि अमीनचंद का हाथ अधिक रहेगा तो उसके सफल होने पर उसी की धाक अंग्रेजों में अधिक रहेगी और उनके स्वार्थं को धक्का लगेगा। सेठों के दलाल रंजीतराय पर भी नवाब की बड़ी कृपा थी, जिसे अमीनचंद ने उखाड़ दिया था। इससे भी वे बुरा मानते थे। इसी लिये उन्होंने मीर जाफ़र को वैसा सुझाया था। पर अमीनचंद उस षड्यंत्र को आरम्भ से जानते थे, इससे उनसे छिपाना असम्भव था । इस षड्यंत्र के पारस्भ करने वाले तथा उसकी सफलता के लिये सतत प्रयत्न करते हुए अमीनचंद का भी प्राण सर्वदा शंका में रहता था और इसी लिए वे अपनी सेवाओं का पुरस्कार पाने की भी आशा लगाए थे। कलकत्ते में अंग्रेज़ों ही के कारण ये धन-जन की पूरी हानि उठा चुके थे जिसकी भी पूर्ति करना आवश्यक था। कंपनी द्वारा अकारण बड़े घर में बंद होने के बाद भी अपनी इच्छा से यह मुर्शिदाबाद में रहते हुए कंपनी की सब प्रकार से सहायता कर रहे थे। इन विचारों से पड्यत्र के सफल होने पर उसमें भाग माँगना होंने उचित समझा। "किसी भी रूप में राजद्रोह दोष है और जिस राजद्रोह में अमीनचंद ने योग दिया था, उसमें धोखा और प्रतारण की मात्रा भी अधिक थी। तब भी अमीनचंद अन्य पड़यंत्र कारियों से किसी प्रकार बुरे नहीं थे । कलकत्ते के भागे हुए गवर्नर और गुप्त समित के अन्य सदस्य जब लाखों रुपये, 'मशीन चला देने के लिए' ले रहे थे तो इन्हीं की निज सेवाओं का मूल्य, जिसने मशीन को चलता रक्खा, अधिक माँगने का दोष क्यों लगाया