पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२९१

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२८४ [ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र म्वाभाविक हुआ है, और उसका यह कथन कि 'निवृत्त करोगी? धर्म पथ से ? सत्य प्रेम से ? और इसी शरीर में ? कितना भावावेशपूर्ण है। नारद जी के कथन पर सत्यवान के पिता यह विवाह स्वीकार कर लेते हैं। बाद को सर्पदंशन से मृत्यु होने पर भी सावित्री अपने पातिव्रत्य-बल से उन्हें जिला लेती है। इस प्रकार भारतेन्दु जी के मौलिक नाटकों के मुख्य मुख्य पात्रों के चरित्र-चित्रण की विवेचना करने से यह ज्ञात हो जाता है कि वे इस कला-प्रदर्शन में पूर्णतया सफल हुए हैं । प्राकृतिक वर्णन की कमी कवियों के विषय-क्षेत्रों को देखने से ऐसा ज्ञात होता है कि कुछ कविगण ने केवल वाह्य-प्रकृति की वर्णना में अधिक प्रयास किया है और कुछ ने नर-प्रकृति तक ही अपनी कविता आबद्ध रखी है। कुछ ऐसे भी कवि हो गए हैं, जिनकी रुचि दोनों ही ओर समानरूप स थी। एक बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि कवि द्वारा वाह्य-प्रकृति का वैसा ही वर्णन होता है, जैसा उस. के हृदय पर उस दृश्य के देखने से असर पड़ता है। एक ही दृश्य दो या अधिक हृदयों पर कई प्रकार का असर डालता है और वे उसी का कई प्रकार से वर्णन भी कर डालते हैं। इन वर्णनों से श्रोताओं के हृदयों में भी विभिन्न प्रकार के भाव उद्वेलित हो उठते हैं। तात्पर्य इतना ही है कि प्राकृतिक दृश्यों का काव्य-जगत् में जो विधान होता है वह वही है जो उन्हें देखकर कवियों के हृदय में खचित हो जाता है, जिससे भिन्न उनकी स्वतंत्र सत्ता नहीं है । नर-प्रकृति के अंतर्गत मानवी वृत्तियों के और मनुष्य ही के बनाए हुए प्राकृतिक दृश्यों के शोभादि के वर्णन आते हैं। -इस प्रकार देखा जाता है कि प्रधानतः कविता के ये दो ही विषय-