पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२९७

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गीति-काव्य] २६१ छोटी छोटी शोश लुटुरिया भ्रमरावलि जनु श्राई री । तैसी तनक कुल्हइया तापै देखत अति सुखदाई री ॥ ४ ॥ क्षुद्र घंटिका कटि में सोहत शोभा परम रसाला री। मनहुँ भवन सुन्दरता को लखि बाँधी बन्दनमाला री ॥५॥ पीत मँगा अति तन पै राजत उपमा यह बनि श्राई री। मनु घन में दामिनि लपटानी छबि कछु बरनि न जाई री ।। ६ ।। कोटि काम अभिराम रूप लखि अपनो तनमन वारै री। 'हरीचन्द्र' ब्रजचन्द्र-चरण-रज लेत बलैया हारैरी ॥७॥ शिशु कृष्ण अब कुछ बढ़ने लगे और अपने ही समवयस्क बालकों के साथ चकई भौंरा खेलने लगे। इस अनुपम बाल- लीला को कवि इस प्रकार कहता है। छोटो सो मोहनलाल छोटे छोटे ग्वाल बाल छोटी छोटी चौतनी शिरन पै सोहैं। छोटे छोटे भंवरा चकई छोटी छोटी लिए छोटे छोटे हाथन सों खेलें मन मोहैं । छोटे छोटे चरण सों. चलत घुटुरुवन चढ़ी ब्रजबाल छोटी छोटी छवि जोहैं 'हरीच'द' छोटे छोटे कर पै माखन लिए उपमा बरनि सके ऐसे कवि को हैं। श्रीराधिका जी के अवतरित होने का कारण भक्तकवि प्रेम पथ का प्रागट्य बतलाते हैं । यदि यह अवतीर्ण न होती तो पुष्टि मार्ग कौन स्थापित करता और श्रीकृष्ण के साथ रासमंडल के बीच कौन सुशोभित होता ? सब से बढ़ कर 'सखा प्यारे कृष्ण के गुलाम राधारानी के' कवि महोदय किसकी शरण जाते ? सुनिए-