पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३०

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१७ पूर्वज-गण जाय ?"१ अन्त में वाटस् ने दुहराई हुई पांडुलिपि को भेजते समय, जिसमें तीस लाख रुपया अमीनचंद को देना तै पाया था लिखा था कि यदि अमीनचंद की इच्छा के विरुद्ध किया जायगा तो वह हाल नवाब से कह देगा । इस पर गुप्त समिति के सदस्यों ने यही निश्चय किया कि इस 'अर्थपिशाच' अमीनचंद को कुछ भी न दिया जाय । परन्तु उसे किस प्रकार धोखे में रखा जाय वह निश्चय नहीं हो रहा था। प्रत्युत्पन्नमति क्लाइव ने मि० मैलेसन के शब्दों में 'लूट में एक साथी को भाग न देने का अप्रतिष्ठित एक . उपाय' निकाल ही लिया । उपाय यही किया गया कि लाल रंग के एक कागज़ पर संधि-पत्र लिखा गया, जिसमें अमीनचंद को भी भाग मिलने का उल्लेख था, पर श्वेत पत्र पर, जो असली संधिपत्र था, इसका कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया। बेड़ाध्यक्ष (ऐड- मिरल) वॉटसन के जाली संधिपत्र पर हस्ताक्षर करने में इतस्ततः करने पर क्लाइव ने लूसिंगटन से उनका हस्ताक्षर बनवा दिया। अमीनचंद का अंग्रेजों की सत्यप्रियता पर इतना विश्वास था कि वे उनके लिए शपथ तक खा चुके थे, इससे उन्होंने इस संधिपत्र को देखकर कुछ भी संदेह नहीं किया। इन दो संधिपत्रों के सिवा एक और गुप्त संधिपत्र था, जिससे सेना के जल तथा स्थल विभागों को और कंपनी के अन्य सज्जनों को भी धन मिलने वाला था। इस प्रकार तीन संधिपत्र लिखे गये थे। इन पर मीर जाफ़र का हस्ताक्षर कराने को वॉटस् स्वयं ५ जून को स्त्री वेश में पालकी पर बैठ उसके घर गया और कुरान का शपथ खाकर तथा मीरन के मस्तक पर हाथ रख कर मीर जाफर ने उन पर पर हस्ताक्षर कर दिया । 'सैरुलमुताखरीन' लिखता है कि 'दोनों महाजनान मजकूर ( कुछ लोग जगत सेठ और अमीनचंद 'बेवरिज, हिस्ट्री आव इंडिया, जि० १, पृ०५८३ .