पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३१

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१८ भारतेंदु हरिश्चन्द्र मानते हैं ) इसके जामिन हुए।" पर अमीनचंद नाम ठीक नहीं है क्योंकि वे ३० मई को ही मुर्शिदाबाद से चले गये थे। यहाँ जगत सेठ के दोनों पुत्र महताब राय और स्वरूपचंद से तात्पर्य हो सकता है। ये संधिपत्र मीर जाफर के विश्वासी अनुचर अमीर बंग के हाथ १० जून को कलकत्ते पहुँच गए। अमीनचंद को मुर्शिदाबाद से दूर कर कलकत्ते ले जाने का भार स्क्राप्टन पर छोड़ा गया था। उसने इन्हें यह समझाया कि संधि तो हो ही गई है और दो तीन दिन में युद्ध छिड़ ही जायगा, इससे उस समय इस स्थूल देह के साथ घोड़े पर चढ़ कर भागना सम्भव न होगा, इस कारण पहिले ही से भागने का प्रबन्ध करना चाहिये । अमीनचंद भी यह उचित समझकर कलकत्ते की ओर स्क्राप्टन के साथ चल पड़े। इससे यह ज्ञात होता है कि अमीनचंद स्थूलकाय थे। ए० के० राय साहब ने अपने सेन्सस रिपोर्ट में कुछ प्रवाद वाक्य लिखे हैं, जिनसे इनकी लंबी डाढ़ी का पता चलता है। प्रवाद वाक्य यों हैं-'गोविंदरामेर छाड़े। बनमाली सरकार बाड़ी। ओमीचाँदेर दाड़ी।' प्लासी के मैदान में राय दुर्लभ राय से इनसे भेंट हुई और इन पर जाल खुल गया, पर स्क्राप्टन के इस कथन पर कि अंत में निश्चित हुआ संधिपत्र अभी मीर जाफ़र तक को नहीं ज्ञात है, इन्हें कुछ शान्ति मिली । १८ जून को ये कलकत्ते पहुँचे, जहाँ इनका दिखौआ स्वागत किया गया। १२ जून को वॉटस् भी मुर्शिदाबाद से भागे। तब सिराजु- दौला ने युद्ध ही ठान कर कलकत्ते की ओर चढ़ाई की और इधर लाइव भी तीन सहस्र सेना के साथ कटोपा और अग्रद्वीप होते हुए पलासी के मैदान में पहुँचा। क्लाइव को आशा दिलाई गई थी कि युद्ध नाममात्र को ही होगा पर जब उसने नवाब की सेना की ब्यूह- रचना और युद्ध देखा तब अमीनचंद को बुला कर उनकी भर्त्सना