पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३११

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खड़ी बोली तथा उर्दू कविता] सच्चों के तो काम हैं जितने वह सच्चे होते हैं सभी। फिर बकते हैं भला क्यों सब के जहाँ झूठा है अजी ।। भारतेन्दु जी उर्दू के सच्चे शायक थे। उर्दू की इनकी गद्य रचनाओं का उल्लेख हो चुका है। इन्होंने उर्दू भाषा में कविता भी काफी की है और इनकी हिन्दी कविता पर भी इस उर्दू को जानकारी का जो असर पड़ा है वह भी उल्लिखित हो चुका है। भारतेन्दु जी के दरबार में अमीर अली नामक कोई कवि आते थे, जो इनकी कविता 'इसलाह' करने को ले जाते थे, पर स्वयं न कर सकने पर मौलवी 'फायज़' के पास उन्हें ले जाते थे, जो उर्दू के प्रसिद्ध कवि तथा फारसी के अपूर्व विद्वान थे। यह स्वयं कहते थे कि 'बा० हरिश्चन्द्र के शैरों में ख्यालात ज़रूर बहुत ऊँचे होते थे लेकिन चूं कि उन्होंने उदु जुवान बाकायदा नहीं सीखी थी इसलिये उनकी जुबान चुस्त नहीं थी।' यह भी कहते थे कि उनके शैरों के इसलाह में वह अपने पिता की सहायता लेते थे और इस कारण भारतेन्दु जी के बहुत से राजल उनके पास हैं। उन्होंने उन्हें देने का वादा भी किया था पर इसी बीच उनका देहान्त हो गया। भारतेन्दु जी का 'ताजीरात शौहर' उर्दू ही में है, जिसकी समालोचना में 'हिन्दुस्तानी लखनऊ' समाचार पत्र में लिखा गया था कि “मुसन्निा ने एक जराफ़त के पैराए में वहमी औरतों का पूरा नक़शा खींच दिया है । यह दिल बहलाने का निहायत उमदा नुसखा है । हम बाबू साहिब से सिफारिश करते हैं कि वह एक 'कानून औरत' का भी बना दें। जुर्माना और कैद दोनों शौहर के वास्ते बाबू साहिब ने निहायत उमदा तजवीज किया है । बाबू साहब की तसनीफात और तालीफात हिन्दी जुबान में कसरत से