पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३१५

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- खड़ी बोली तथा उर्दू कविता] ३०४ सबके अंत में प्रार्थना की जाती है- वह नाथ अपनी दयालुता तुम्हें याद हो कि न याद हो। व जो कौल भक्तों से था किया तुम्हें याद हो कि न याद हो । सुना गज की ज्योंही व आपदा न बिलव छन का सहा गया । वहीं दौड़े उठके पियादे पा तुम्हें याद हो कि न याद हो ।। अब इनके ग़जलों से कुछ चुने हुए और उद्धृत कर दिये जाते हैं। दमे रफ़्तार आती है सदा पाजेब से तेरे । लहद' के खिस्तगाँ२ उठो मसीहा याद करते हैं। मसल सच है बशर पर करे नेअमत बाद होती है। सुना है आज तक तुमको बहुत वह याद करते हैं। लगाया बाग़बाँ ने ज़ख्म कारी दिल पै बुलबुल के गिरेबाँ चाक गुचः हैं तो गुल फरियाद करते हैं ।। दिल जलाया सूरते परवान: जब से इश्क में । फ़र्ज़ तब से शमत्रा पर आँसू बहाना हो गया ॥ हो परेशानी सरे मू भी न जुल्फे यार को। लिए दिल भी मेरा सद चाक शानः हो गया । ख्वाब गफलत से जरा देखो तो कब चौके थे हम । काफिला मुल्के अदम को जब रवाना हो गया । खाकसारीने दिखाया बाद मुर्दन भी उरूज आसमाँ तुर्बत प मेरे शामियाना हो गया। बाद मरने के ख़बर को कौन श्राता है रसा'। खत्म बस कुब्जे लहद तक दोस्ताना हो गया ।। 'एक प्रकार की कम । घायल । उमनुष्य, आदमी। थोड़ी। पतंगा। बाल के नोक बराबर । उत्कर्ष ।