पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३२

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पूर्वज-गण १६ करने लगा कि पहिले यही कहा गया था कि 'केवल साधारण युद्ध होने पर ही काम निपट जायगा और कुल सेना नवाब के विरुद्ध है पर यह सब उलटा ही हो रहा है ।' अमीनचंद ने नम्रभाव से कहा कि मीरमदन और मोहनलाल ही युद्ध कर रहे हैं, वे ही स्वामि- भक्त हैं, उनके पराजित होते ही फिर कोई अस्त्र न चलावेगा। फलत: लाइव ने पलासी युद्ध में विजय प्राप्त किया, सिराजुद्दौला पकड़ा जाकर मार डाला गया और मुर्शिदाबाद में राजकोष बाँटने को सेठों के गृह पर समिति बैठी। अमीनचंद बिना बुलाए ही साथ गए थे पर मंत्रणा में उन्हें योग नहीं देने दिया गया। कोष में केवल डेढ़ करोड़ रुपये थे और संधि के अनुसार दो करोड़ पिछत्तर लाख देना था। इसके सिवा १६ लाख क्लाइव को, ८ लाख वॉट्स को और १० लाख अन्य साहबों को भेंट करना था। अंत में यही निश्चय हुआ कि इस समय आधा-आधा दिया जाय और आधा तोन वर्ष में क़िस्त करके चुकाया जाय । इसके अनन्तर "लाइव और स्क्राप्टन दोनों ही अमीनचंद के पास गए और स्क्राप्टन ने हिन्दुस्तानी भाषा में कहा कि 'अमीनचंद लाल काग़ज का संधिपत्र जाली था, तुम्हें कुछ भी न मिलेगा। यह सुनकर वे बेहोश हो गए और उनके नौकर पालकी पर लिटा उन्हें घर ले गए। कुछ दिन के अनन्तर वह क्लाइव के यहाँ गया जिसने उसे किसी तीर्थस्थान को जाने की सम्मति दी। 'मालदा के पास के सुप्रसिद्ध तीर्थ में गए और पागल होकर लौटे। इसी हालत मेंडेढ़ वर्ष रह कर मृत्यु हो गई ।”१ बकलैंड कृत 'इंडियन बायोग्राफ़िल डिक्शनरी' में इनकी मृत्यु का ५ दिसम्बर सन् '१७५८ ई० की होना लिखा है। १अोर्म, मिलिटरी टैंजैक्शन्स, जि० २, पृ० १८२