पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३३

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२० भारतेंदु हरिश्चन्द्र अमीनचंद से जो कुछ व्यवहार किया गया था वह उनके योग्य ही था पर क्या इस कारण वैसा दुर्व्यवहार करनेवाले क्षम्य हैं ? हाँ, कुछ इतिहास लेखकों ने केवल क्षम्य ही नहीं माना है पर ऐसा दुर्व्यवहार करने के लिए बाध्य होने के कारण लाइव को 'शहीद' तक माना है। पर सत्यप्रिय लेखक यही कहते हैं कि यह सब जाल केवल रुपये ही के लिए किया गया था और सवर्था निंद्य है। प्रत्येक पाठक पर ही कुल वृत्त पढ़ कर अपनी राय ठीक करना छोड़ देना उचित समझ कर इस विषय पर विशेष नहीं लिखा गया। इतना लिखना अवश्य उपदेशमय ज्ञात होता है कि इन षड्यंत्रकारियों में मुख्य-मुख्य का कैसा अन्त हुआ। मीर जाफ़र कोढ़ी होकर मरा, सिराजुद्दौला को मारनेवाले मीरन पर वज्रपात हुआ, अमीनचंद पागल होगल मरे, जगत सेठ दोनों भाई मीर कासिम द्वारा मारे गये और क्लाइव ने आत्महत्या कर ली। राजा राजवल्लभ ऐसा दरिद्र होकर मरा कि उसकी विधवा पत्नी को कम्पनी से प्राथना कर, पेट पालन के लिये पेंशन प्राप्त करनी पड़ी थी । मेन के 'हिन्दू लॉ ऐंड यूसेज' नामक पुस्तक के सप्तम संस्करण के पृ० ५३८ पर लिखा है कि 'देशी लोगों का सबसे प्राचीन ज्ञात दानपत्र प्रसिद्ध अमीनचंद ही का है। यह सन् १७५८ ई० का लिखा है। जब अंग्रेजी न्यायालयों से अंग्रेजी अस्त्रशस्त्र का प्रभुत्व बढ़ कर था।' यह विल अर्थात् वसीयतनामा 'साहित्य-संहिता' में जस्टिस शारदाचरण मित्र द्वारा प्रकाशित किया गया है, जिस लेख का प्रधान लक्ष्य यही सिद्ध करना था कि 'ओमीचाँद बंगाली नेई'। लंदन में वर्णसंकर सन्तानों के पालन के लिये एक मांडलिंग अस्पताल बना है, जिसकी नींव सन् १७३६ ई० में कैप्टेन कोरम