पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३३६

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नवीन रस] . समय उनकी संरक्षा में थी, दूसरे को सौंप रहे थे और उसे इस कारण किसी प्रकार का यदि दुःख पहुँचे तो वह उन्हें क्षमा करे। पृथ्वी के प्रति उनकी समवेदना ही ने यह कहलाया था। वे सोच रहे थे कि इतने बड़े राज्य का उत्तरदायित्व, जिसके लिये वे निरं. तर दत्तचित्त रहते थे, ऐसे अकारण क्रोधी ब्राह्मण को सौंप रहे थे, जो न जाने किस समय इस पर गजब ढहा दे । सब कुछ सम. झने पर भी दान की हुई वस्तु को दान-पात्र को देकर वे सच्चे दानवीर थे हास्य रस का स्थायी भाव हास है। जिस विकृत आकार, वाणी, वेष तथा चेष्टा को देख कर लोग हँसें वही बालंबन और उसकी चेष्टा आदि उद्दीपन विभाव है। आँखों का खिल उठना, मुस्किराना, हँसना आदि अनुभाव हैं और निद्रा, आलस्य आदि संचारी भाव होते हैं। हास्य के छः भेद स्मित, हसित, विहसित, अवहसित, अपहसित, तथा भविहसित हँसने के छः भेदों के अनु- सार होते हैं। दो एक उदाहरण लीजिए- १-जोर किया जोर किया जोर किया रे । आज तो मैंने नशा जोर किया रे । साँझहि से हम पीने बैठे, पीते पीते भोर किया रे । १-गेंदा फूले जैसे पकौरी। लड्डू से फले फल बौरि बौरि ॥ खेतन में फूले भात दाल । घर में हम फूले कुल के पाल ॥ आयो आयो बसंत आयो श्रायो बसंत । उपयुक्त दोनों ही गाने विकृत आकार, वाणी तथा चेष्टा वालों द्वारा पागलपन में हँसने की मी चेष्टा करते हुए गाया जा रहा है। इन्हें सुनने से कोरी हँसी आती है और इनमें हास्य रस है। करुण रस का स्थायी भाव शोक है। जिस इष्ट के के नाश