पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३५

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२२ भारतेंदु हरिश्चन्द्र थी, उन्हीं को नौपति पदवी मिली थी। यह पदवी अब तक प्रसिद्ध है पर उन नौ वंशों में अब एक वंश का भी पता नहीं है। विवाहादि शुभ कार्यो तथा शोक के अवसर पर पगड़ी बैंधवाने के लिए स्वयं काशिराज इन वंशों में पधारते थे। यह मान अव तक उस कुल में विवाह करने के कारण बा० हर्पचंद के वंश को प्राप्त है। सेठ गोकुलचंद को अन्य कोई संतान नहीं थी इससे बाबू फतेहचंद ही उनके उत्तराधिकारी हुए । बा० फतेहचंद हनुमान जी के परमभक्त थे और वे प्रति मंगलवार को हनुमानघाट के बड़े हनुमान जी का दर्शन करने जाया करते थे एक दिन प्रसादी माला पहिरे हुए वे घर चले आए और उतारते समय उसमें से एक वानराकृत हनुमान जी की स्वर्ण प्रतिमा गिर पड़ी, जो केवल अंगुष्ठ-प्रमाण थी। उसी समय से उस प्रतिमा की सेवा बड़ी भक्ति से होने लगी और अब तक ये महावीर जी उस वंश के कुलदेव माने जाते हैं। ता० १८ सफर, सन् १२५४ हिजरी का लिखा हुआ फ़ारसी का एक ग्रन्थ है, जिसमें गवर्नर-जेनरल की ओर से राजा- महाराजाओं तथा रईसों को जिस प्रकार के काग़ज़ पर तथा जैसी प्रशस्तियों से पत्र लिखे जाते थे उनका विवरण दिया है। उसमें इनकी प्रशस्ति यों लिखी है—बा० फतेहचन्द साहू-बाबू साहेब मेहबान दोस्तान-सलामत-ख़ात्मा-कागज़ अफ़शाँ-(चमकता- हुआ) मुह खर्द (मुहर छोटी)। सन् १७४० ई० में मनसाराम की मृत्यु पर बलवन्तसिंह राजा हुये और सन् १७७० ई० में इनकी मृत्यु हो जाने पर नवाब वजीर शुजाउद्दौला यह राज्य हड़प जाने का विचार कर रहे थे पर अंग्रेजों के वरोध करने पर चेतसिंह राजा हुए। सन १७७६ ई० में बनारस राज्य सरकारी साम्राज्य में मिला लिया गया। सन