पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३५३

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लोक-पालक ३४६ [भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का नाश कर लोक रक्षा करने वाले आदर्श वीर भी अवतरित होते पाए जाते थे। ऐसे आदर्श वीरों में दया, उदारता, शील, शक्ति आदि लोक-रक्षक उदात्त वृत्तियों की पूर्ण अभिव्यक्ति पाकर जनता उन पर ऐसी मुग्ध हुई कि उसने उन्हें परब्रह्म के लोक- पालक सगुण-रूप विष्णु का अंश मान लिया। विष्णु ही इष्टदेव हुए, जिनमें मानव मंगल की समग्र आशाएँ केंद्रीभून हो उठीं। ये ही बार बार लोकरक्षा के लिये असाध्य नृशंस राक्षसों का संहार करने को इस पृथ्वी पर आते दिखलाई पड़ने लगे और इनके ऐसे ही अनेक अवतारों में श्री रामचंद्र और श्री कृष्णचंद्र ही वैष्णवों के विशेष प्रिय उपास्य देव हुए। इसका कारण यही है कि इन दोनों महान् आत्माओं ने मानद समाज में मिल कर उसी को अपने स्थितिविधायक धर्म, शोल तथा अन्य गुणों से एकदम मुग्ध कर लिया था। इनके प्रति मनुष्यों के हृदय में जो प्रेमभाव भर उठा था वह 'माहात्म्य ज्ञान' अर्थात् उपासना बुद्धि से मिल कर भक्ति में परिवर्तित हो उठा। यही कारण है कि भक्ति का पूर्ण विकास वैष्णवों ही में वैष्णव संप्रदाय के दो मुख्य विभाग हो गए, एक कृष्णो- पासक तथा दूसरा रामोपासक । श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने बंग देश में तथा श्री वल्लभाचार्य महाप्रभु ने पश्चिमोत्तर प्रांत में कृष्ण भक्ति-भाव को प्रवाहित कर जनसाधारण के निराशामय खाली हृदयों को आशा तथा आनंद से परिपूर्ण कर दिया । अष्टछाप के सुकवियों तथा अन्य भक्त जनों की वीणाओं की स्वर- लहरी भी उनके हृदयों को तरंगित करने लगी। इन महात्माओं ने बालमुकुंदोपासना ही का विशेषतः प्रचार किया था पर ब्रज- लीला के समप्र प्रेम की आधारभूता श्री राधिका जी की उपासना हुआ है।