पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३६

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२३ पूर्वज-गण १७८१ ई० में राजा चेतसिंह के बलवा के शान्त होने पर बनारस नगर अंग्रेजों के अधिकार में आगया। बाबू फ़तेहचंद ने अंग्रेज अफसरों की बहुत सहायता की थी । सन् १७८८ ई० में जोनाथन डंकन साहब काशी के रेजीडेंट तथा सुपरिन्टेन्डेन्ट नियुक्त होकर आए थे और इन्होंने दवामी बन्दोबस्त करने तथा बच्चों के मार डालने की प्रथा उठाने में पूरा उद्योग किया था और सफलता प्राप्त की थी । बाबू फतेहचंद ने इनकी इन सत्कार्यों में बहुत सहायता की थी, जिसके लिये डंकन साहब ने इन्हें बहुत धन्यवाद दिया था। बा० फतेहचंद के काशी में आकर बस जाने के कुछ समय के अनन्तर उनके बड़े भाई राय रत्नचन्द्र बहादुर भी मुर्शिदाबाद से यहीं चले आए और रामकटोरे वाले बाग में रहने लगे। उनके साथ राजसी ठाट के पूरे सामान थे । सन्तरी का बराबर पहरा रहता था । इनकी सवारी के साथ में डंका, निशान, माही-मरातिब और नकीब भी चलते थे। बा० गोपालचन्द जी के समय तक नकीव की प्रथा थी। रामकटोरे वाला बारा काशी जी में इस वंश का पहिला स्थान समझा जाता है और यहीं राय रत्नचन्द्र बहादुर ने अपने ठाकुर श्रीलाल जी को पधराया था, जो अबतक वर्तमान हैं। विवाह तथा पुत्रोत्सव के अनन्तर डीह-डिहवार (गृहदेवता) की पूजा अब तक यहीं होती है। ठाकुर जी की मूर्ति, गरुड़स्तम्भ तथा चक्रस्थापन को देख कर यह ज्ञात होता है कि वे उस समय तक श्री सम्प्रदाय के अनुयायी थे। इन्होंने अवस्था अधिक पाई थी। इनका लिखा हुआ एक वसीयतनामा सन् १८२० ई० का है, जिसमें इन्होंने अपने कुल ऐश्वर्य का उत्तराधिकारी बा० हर्षचंद तथा राय रामचन्द्र की स्त्री बीबी बदाम कुँअरि को माना है। राय रत्नचन्द्र बहादुर को केवल एक पुत्र रायचंद थे, जो यौवनकाल ही में सन् १८१५ ई० में परलोक सिधारे । उनका