पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३६४

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देश-प्रेम] अनेक कवि हो चुके हैं जिनमें अंतिम महाकवि भूषण' थे । इन्होंने छत्रपति महाराज शिवाजी के विजयों, उनकी वीरता, देश-सेवा, धर्मोन्नति तथा धर्मरक्षा के कार्यों आदि का अत्यंत ओजपूर्ण वर्णन किया है पर यह सब, कहा जा सकता है कि वास्तव में, धनाकांक्षा तथा ऐसे प्रातःस्मरणीय सुरात्र के पा जाने के कारण लिखा जा सका है। यदि इनको कविता शिवाजो के लिए न होकर किसी 'अवधूत सिंह' आदि के लिए ही होती तो एक सवार ही के समग्र पृथ्वी को देने के वर्णन के समान मजाक ही समझी जाती । भूषण के बाद वीर रस के कोई अच्छे कवि हुए भी नहीं। इन वीर रस के कवि ने समप्र भारतवासियों को संबोधित कर उनकी तथा उनके देश की प्राचीन उन्नत अवस्था, मध्यकाल की परतंत्रता तथा अवनत अवस्था और वर्तमान काल में भी अवसर पाकर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर न होने की कायरता या मूर्खता डंके की चोट वर्णन को और उन्हें राष्ट्र. भाषा की उन्नति करते हुए देश सेवा करने को। अनेक प्रकार से उत्साह दिलाया है। काव्य, नाटक, लेख जो कुछ लिखा है, उनम कहीं न कहीं अवसर लाकर इन विषयों पर अपने पाठकों, दर्शकों, श्रोतामों को निरंतर आकर्षित करते रहे। इनके चरित्र तथा इनकी रचनाएँ सभी इस देश-भक्ति के रंग से रंजित हैं और इनकी यह ऐसी निजी विशेषता है कि यह हिन्दी तथा हिन्दुस्थान के इतिहास में भी अमर हो गए हैं । पारसी आरसी को लेकर कवि ने प्रेम का अत्यंत भव्य रूर खड़ा कर दिया है। नायिका नायक को हठवश भारती नहीं देखने दे रही है। क्यों ? जिसमें वह अपना रूप देखकर अपने हो पर