पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३७१

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आँसू] नहीं जानते । उद्धव से ज्ञानी भी समझाकर धैर्य नहीं दिला सकते। मर्ज बढ़ता ही जाता है ज्यों ज्यों दवा की जाती है। इसके एक- मात्र वैद्य या मसीहा वही 'लालन' हैं जिनके 'लालन से इन्हें धैर्य हो सकता है और ये अपना रोना छोड़ सकते हैं- घर बाहर केन को काम कछु नहि को यह रार निवारि सके। 'हरिचन्द ज' जो बिगरी बदि कै तिन्है कौन है जौन सँवारि सके। समुझाह प्रबोधि के नीति कथा इन्हें धीरज कोऊ न पारि सके। तुम्हरे बिनु लालन कौन है जो यह प्रेम के आँसू निवारि सके ।। सत्य हो जिसकी दृष्टि में एक के सिवा अन्य कोई दूसरा रही नहीं गया और जो उसका अनन्य प्रेमाराध्य देव बन गया है उसके सिवा किसकी सामर्थ्य है, जो उस प्रेम के आँसू को दूर कर सकता है। यह उपाय उसी शक्तिमान के हाथ में है जो ऐसी आग लगा सकता है, जिससे निरंतर अश्रुजल बहता रहे शरीर छीजता रहता है पर उसका जला दिल, विरह-दग्ध हृदय, जल का अजस्र स्रोत बना रहता है। अग्नि से उत्पन्न होते अश्रुजल को रोकना उसी जादूगर के हाथ में है। विरह-विधुरा को सम- झाई ही नहीं देता कि यह कैसी आग है-... बाढ़यौ करै दिन दिन छिन ही छिन कोटि उपाय करौ न बुझाई । दाहत लाज समाज सुखै गुरु की भय नींद सबै सँग लाई। छीजत देह के साथ में प्रानहु हा 'हरिचन्द' क का उमाई । क्यों हूँ बुझै नहि आँसू के नौरन लालन कैसी दवारि लगाई ।। विरह के आँसू गर्म होते ही हैं और इस प्रकार अग्नि के संपर्क से उमड़ते हुये आँसू की इस बाढ़ को देखकर प्रेमिका घबड़ा जाती है और अन्य कुछ न माँग कर केवल यही चाहती है कि भाँसुओं को अपने दामन से पोंछ कर इन्हें बड़भागी बना दो, हम तो दुःख भोग लेंगे पर ये नित की दुखिया आँखें बेचारी 9