पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३९

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बाबू हर्षचंद भारतेंदु हरिश्चन्द्र इनके पिता को आए लगभग पचास वर्ष हो गए थे पर अपने प्रशंसनीय गुणों से जनसाधारण में ये इतने प्रसिद्ध हो गये कि इनकी कोठी का नाम अब तक काले हर्षचंद, ही के नाम से प्रसिद्ध है। तत्कालीन ग्राम्य गीतों में लोग इनका गुणानुवाद किया करते थे। काशी में इनके प्रतिष्ठा तथा सम्मान का यह एक प्रत्यक्ष उदाहरण है कि जब सन् १८४२ ई० में गवर्नमेन्ट ने आज्ञा दी कि प्राचीन तौल की पन्सेरियां उठा कर अंग्रेज़ी पन्सेरी जारी हो तब काशी. वासी बिगड़ खड़े हुए और बाजार बंद कर दिया। तीन दिन तक हड़ताल रहा । उस समय काशी के कमिश्नर प्रसिद्ध मार्टिन रिचर्ड गबिन्स थे, जिनको अवस्था उस समय पचीस वर्ष की थी। इन्होंने इस झगड़े को निपटाने के लिये पंच मानना निश्चित किया और बा० हर्षचंद, बा० जानकीदास और बा० हरीदास साहू को पंच माना। काशीवासियों ने भी इन लोगों को पंच स्वीकार कर लिया। बाग़ सुन्दरदास में बहुत बड़ी पंचायत हुई और अंत में यह निश्चित हुआ कि पुरानी पन्सेरियाँ ज्यों की त्यों जारी रहें। कमिश्नर साहब भी इस निश्चय से सहमत हो गए. और नगर में बड़ी खुशी मनाई गई। इस निश्चय के अनुकूल उस समय अग्रवाल साव घराने में भी एक हर्षचंद थे जो इनसे रंग में अधिक गौर थे, इस कारण वे गोरे हर्षचंद और ये काले हर्षचंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। यह साव घराने के एक धनाढ्य महाजन थे और काशीवासी इन्हें भी बड़े सम्मान की दृष्टि से देखते थे। इन्हीं के सुपुत्र बा० महावीरप्रसाद जी से बा० गोपालचंद जी की पुत्री का विवाह हुअा था । 3यह गुजराती वैश्य महाजन थे, जिनके बंश में सर्राफ़ी की चौधराहट बहुत दिनों तक रही । -3 १ २