पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३९१

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परिशिष्ट अ पत्र-व्यवहार सुप्रसिद्ध साहित्य-से रियों के पत्र-व्यवहार अन्य साहित्य- जगत में बड़े भादर से देखे जाते हैं पर हिन्दी के दुर्भाग्य से इसमें इस तरह के संग्रह बहुत ही कम है। हिन्दी के प्रत्येक पाठक का यह धर्म होना चाहिए कि यदि इस प्रकार के पत्र उनके पास हो तो वे उन्हें पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कर दिया करें। यहाँ कुछ चुने हुए पत्र, जो या तो भारतेन्दु जी के लिखे हैं या उनको लिखे गए हैं, पाठकों के मनोरंजनाथ प्रकाशित कर दिये जाते हैं। १-श्रीगोस्वामी राधाचरण जी को लिखित अनेक कोटि साष्टाङ्ग प्रणाम- आपका कृपापत्र मिला, चन्द्रिका सेवा में भेजी है स्वीकृत हो। आप अनेक ग्रंथों का अनुवाद करते हैं तो चैतन्य चन्द्रोदय का क्यों नहीं करतेबड़ा प्रेममय नाटक है इसके छन्द मात्र मैं दत्तचित्त होकर बना दूंगा, उत्साह कीजिए, जातीय गीत भी कुछ बनें और छपैं, मैं बहुत उद्योग करता हूँ किन्तु किसी ने न बना- कर भेजे। आपका हरिश्चन्द्र