पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३९३

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परिशिष्ट-प्र] ३८७ - जो है उसमें मेरी बुद्धि में यह बात आती है कि ब्राह्मणों को एक ही बेर छोड़ देने की अपेक्षा उनको सुधारना उत्तम है - भाररन्दु टाइप में छपै तो बड़ी उत्तम बात है। २४ पेज मै टाइटिल पेज क २५० कापी छपाई कागज समेत २५) रु० में उत्तम छप सकता है, यहाँ छपे तो मैं प्रूफ आदि भी शोध दिया करूँ। मै इन दिनों महात्माओं के चित्रों की फोटोग्राफ में कापी करके संग्रह कर रहा हूँ, नागरीदास, श्री महाप्रभु आदि कई चित्र 'तो हैं, कुछ वहाँ भी मिलेंगे ? आगरे के उपद्रव का वृत्तांत मैंने विज्ञायत · कई मित्रों को लिखा है उस पमाण के हेतु कई समाचार पत्र भी भेजे हैं । इस मास का भेजूंगा इससे इसकी एक कापो और दोजिए । अब को इसमें समालोचना छोटी छोटी बहुत. सुन्दर हैं। श्रृंगार लतिका पर नकछेदा जी न रजिस्टरी भा करा ली। यह मजा देखिए गजा मानसिंह क मानों प्राय पोध्यपुत्र हैं । ललिता ना० चन्द्रावली का छाया पर बनी है, पस्नु, विचारे वैष्णवमत का न भेद जाने न पाप वैष्णव, पर वैष्णव पत्रिका क संपादक तो हैं-नाटकों में गँवारी बैसबारे का मेरा बुद्धि में उत्तम होगा क्योंकि इस प्रदेश में दूर तक बालो जाता है । दासानुदास प्रतिपदा- हरिश्चन्द्र ४-उक्त सज्जन ही को पत्र अनेक कोटि साष्टाङ्ग दडवत् प्रणामानन्दरं निवेदयति- निस्संदेह आप मुझसे व्यर्थ हष्ट हुए, इस वर्ष के पहिले ही नम्बर में आप का प्रतिवाद छपा है, महा इसमें मेरा क्या दोष है । जिसने आप को निन्दा किया है इसका दो हजार गालो आप