पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३९६

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[ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ८. पं० विष्णुलाल मोहनलाल पंड्याजी को यह पत्र उदयपुर पहुँचने के पहिले लिखा गया था। श्री चरण युगल सरसीरहेषु निवेदनम् । कह्यो बृत्त सत्र श्राजु को, पंड्या जू समझाय । जल प्रयान सब श्री चरन, दरसन हेतु उपाय ॥ १॥ कवि स्यामल स्यामल करत, कच स्यामल उद्यान । मोहन गजसभा रहे, काज करन के ध्यान ॥२॥ मैं बिनु तिनके श्रीसभा, है इकलो हत ज्ञान । संकित ही रहिछौं सतत, सब बिधि इतहि अजान || तासों उचित बिचारि जौ, ब्रायसु दीजै जेहि । मोहन मोहि न छाडहीं, पद जोहन लौं मोह ।। ४ ।। ९. बा० रामदीनसिंह को यह पत्र लिखा था । प्रियवरेषु अब की बकरीद में भारतवर्ष के प्राय: अनेक नगरों में मुघल. मानों में प्रकाश रूप से जो गोबध किया है उससे हिन्दुओं की सब प्रकार से जो मानहानि हुई है वह अकथनीय है। पालिसी- पर-तन्त्र गवर्नमेंट पर हिन्दुओं की अकिंचित्करता और मुसल- मानों की उग्रता भली भाँति विदित है। यही कारण है कि जान बूम कर भी वह कुछ नहीं बोलती, किन्तु हम लोगों को जो भारतवर्ष में हिन्दुओं के ही वीर्य से उत्पन्न हैं ऐसे अवसर पर गवर्नमेन्ट के कान खोलने का उपाय अवश्य करणीय है। इस हेतु आप से इस पत्र द्वारा निवेदन है कि जहाँ तक हो सके इस विषय में प्रयत्न कीजिए । भागलपुर, मिर्जापुर, काशी इत्यादि कई स्थानों में प्रकाश्यरूप में केवल हमारा जी दु:खाने के हाँका ठोकी यह अत्याचार हुआ है.जो किसी किसी समाचार पत्र में प्रकाश