पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३९८

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३६२ भा। तेन्दु हरिश्चन्द्र और शीघ्र ही सकल श्री वैष्णव महाशयों को एकत्र किया। तब मैंने सब महानुभावों से विज्ञापन किया कि हम लोगों को योग्य है कि श्रीमन्नारायण का संकीर्तन स्मरण सतत किया करें और प्रति सप्ताह में एक दिन एकत्र होके गोष्ठो किया रैं। इस सलाह को सब महानुभावों ने सोल्माह म्वीकार किया और रक्त महाशय को अत्यन्त धन्यवाद दिया तिसी समय यह नियत भया कि.प्रति गुरुवार को सात बजे से प्रारम्भ हो न बजे तक यह सभा लगा करैगी। निरंतर श्रीमन्नारायण की अनुवृति किया करेंगे । और श्रीवैष्णव सभा इसका नाम धरा गया तव से प्रति गुरुवार को यह सभा लगा करती है। और श्री महाराज रत्नहरिदास महानु- भाव इस सभा के सभापति हैं। तथा श्री संप्रदाय के विविध ग्रंथों की इसमें चर्चा हुआ करती है। अब आपका परमोत्साह संपादक पत्र पाय के प्रत्युल्लास प्राप्त भया। और अब आनन्दवन का काशी नाम सार्थक प्रतीत हुवा और यह भी निश्चित किया कि अब त ह तो रस बिगड़ा था परच अब बनारस नाम भी वारा- णसी का अन्वर्थक भया। तथा अब से तदीय समाज की वृद्धि परमेश्वर से याचना किया करेंगे और आप कृपा करि निज डोर से तदीय समाज में जो प्रश्न वा उत्तर वा सिद्धान्त हुआ करै। सो अवश्यमेव भेजि के इस शाखा को भी सिंचन किया करिये। क्योंकि आज कल के समय में अनन्त विघ्न विस्तरित हो रहे हैं प्रति दिन सिंचन से सदा हरित बना रहेगा और दुर्जन अजा भी आश्रित हो जायगे। इत्यलम्बहुना संवत् १६३० पौष शुक्ल १३ विज्ञवरेषु शालिप्राम दास श्री वैष्णव सभा कार्य साधक अमृतसर