पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/४०७

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'। यह वर्तमान- ४०२ [ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र शुभचिंतक नहीं था और मैं इस बात को उनके उन चिट्ठियों से अच्छी तरह जानता हूँ जिन्हें उन्होंने बहुत वर्षों तक बराबर मुझे लिखी थीं।' इस लेख में भारतेन्दु जी के ग्रंथों की समा- लोचना भी निकली है, जो विद्वान लेखक के योग्य है। सी० ई० चकलैंड सी० आई० ई० 'काशी के गोपालचंद्र साहू के पुत्र थे.... काल के सबसे अधिक विख्यात कवि हुए और अंतिम शताब्दि के सभी अन्य भारतीय सज्जनों से हिंदी साहित्य के प्रचार के लिए इन्होंने अधिक प्रयास किया था। 'कई वर्षों तक इन्होंने हरिश्चन्द्रचन्द्रिका नामक एक अति उत्तम पत्रिका प्रका- शित की थी। सन् १८६० ई० में इन्हें देश के सभी पत्र-संपादकों ने एकमत होकर भारतेन्दु की पदवी दी थी, और सत्यतः उत्तरी भारत में अब तक यह सर्वश्रेष्ठ समालोचक हो गए हैं।' सर जॉर्ज ए० ग्रियर्सन के० सी० एस० आई०, डी. लिट० आदि 'वर्तमान काल के भारतीय कवियों में यह सब से अधिक प्रसिद्ध है । देशीय साहित्य के प्रचार में इन्होंने जो प्रयास किया है उससे बढ़ कर किसी भी जीवित भारतीय ने नहीं किया है। इन्होंने कई शैलियों में बहुत सी रचनाएँ की हैं और सभी में यह बढ़ गए हैं। देशीय भाषाओं के पत्रों की सरकारी रिपोर्ट 'कविवचनसुधा' हिंदी भाषा का प्रसिद्ध और सर्वजनप्रिय पत्र है। उसकी भाषा शुद्ध और आदर्श होती है। उसके विषय उत्तम और मनोरंजक होते हैं जो उसके योग्य तथा विद्वान संपा.