पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/४२

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२६ पूर्वज-गण के श्वसुर-घराने की निस्संतान समाप्ति होने पर उस वंश की चौधराहट इन्हीं के वंश में चली आई थी इस लिये बा० हर्षचंद बिरादरी वालों को बहुत मानते थे। बुढ़वा मंगल की भाँति होली के अवसर पर तथा अपने और बा० गोपालचंद के जन्म दिवसों पर बराबर बिरादरी की जेवनार तथा महफ़िल होती थी। पंचक्रोशी श्राद्धादि के बहाने भी वर्ष में बीसों बार बिरादरी तथा ब्राह्मणों का जेवनार करते थे। प्रायः नित्य ही दस पाँच जातिभाई इनके साथ खान-पान में सम्मिलित होते थे । इन सब कारणों से बिरादरी में इनके वंश का बहुत मान था। इस वंश में काशी के अग्रवाल जाति की चौधराहट चली आ रही है, इस लिये इस विषय में कुछ लिखना आवश्यक है। ऐसा ज्ञात हुआ है कि पछाही अग्रवाल जाति के पहिले दो चौधरी होते थे। एक चौधराहट बा० हर्षचंद के ससुराल वाले वंश में थी, जिसके नष्ट होने पर उसके उत्तराधिकारी बा० हर्षचंद को वह रिक्थ क्रम में मिली थी । इन्होंने जाति-भाइयों का खूब आदर-सत्कार कर उन्हें अपने वश में रखा । प्रायः नित्य ही बीस-पचीस भाई इनके साथ ब्यालू में शरीक रहते थे। भारतेन्दु जी के समय में दूसरे चौधरी बा० शीतलप्रसाद जी और उनके भाई थे। इन लोगों के पिता बा० मोतीचंद तथा पितामह बा० खुशहालचंद तक चौधराहट होने का पता है। ये अन्तिम सभी लोग दीर्घ- जीवी थे और इनके पहिले मछरहट्टा फाटक के किसी राजा जी के चौधरी होने का पता मिलता है । भारतेन्दु जी के वंश वाले अमीर थे और उनके प्रतिद्वंदी चौधरी के यहाँ धनाभाव था, इससे पहिले वंश की धाक जाति पर जम गई थी। भारतेन्दु जी को इस पर इतना गर्व था कि एक बार इन्होंने यहाँ तक कह डाला कि हम पैर. के अँगूठे से यदि किसी के माथे पर टीका