पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/४५

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सरल ३२ भारतेंदु हरिश्चन्द्र चलाने के लिये यहाँ के महाजनों ने बा० हर्षचंद को मुखिया बना कर एक चिठ्ठा खड़ा किया, जिससे काशी के सभी व्यापारी सवा पाँच आने सैकड़े काट कर मंदिर को देने लगे। मन्दिर का यह पैसा तो अब तक कटता है पर कोई मन्दिर को देते हैं तथा कोई अन्य धर्म-कार्य में लगा देते हैं। श्री गिरिधर जी महाराज ही ऐसे चरित्रवान तथा चमत्कारशक्ति-पूर्ण थे कि उन्होंने इस विश्वनाथ पुरी में वैष्णवता की जड़ जमा दी। यह ऐसे प्रकृति के थे कि गोस्वामी कुल के प्रथानुसार अपना जन्मोत्सव आदि तक न मनाते थे। बा० हर्षचंद ने बहुत आग्रह कर इसे आरम्भ किया, पर सब व्यय इन्हीं को उठाना पड़ा था, क्योंकि महाराज मन्दिर का एक पैसा भी अपने इस उत्सव के लिये नहीं लेना चाहते थे। अब यह उत्सव श्री मुकुन्दराय जी के घर के सभी सेवक मनाते हैं। गोपालमन्दिर के दोनों नक्कारखाने इन्हीं के यहाँ से बने हैं इनमें एक तो बा० गोपालचंद जी के जन्म पर और दूसरा भारतेन्दु बा० हरिश्चन्द्र जी के जन्म पर बनवाया गया था। बा. हर्षचंद जी का बा० जानकीदास तथा जौनपुर के राजा शिवलाल दूबे से बहुत स्नेह था। इनका स्वभाव अत्यंत नाजुक तथा अमीरी का था। घर में बाहर-भीतर फुहारे बने हुए थे, जिससे ग्रीष्म ऋतु में ये जहाँ बैठते थे वहीं फुहारे छूटने लगते थे। एक बार बा० जानकीदास जी ने इन्हें बीमे का कार्य करने की सम्मत्ति दी पर इन्होंने स्पष्ट उत्तर दिया कि 'अपनी जान को बखेड़े में कौन फँसाये और नावों की चिंता में सब आनन्द कौन मिट्टी में मिलावे ।' काशी में भारतसरकार ने इनकमटैक्स के सवा लाख रुपये वसूल करने को समिति बनाई थी, उसका प्रबंध इन्ही के हाथ में था।