पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३८ भारतेंदु हरिश्चन्द्र को एक वसीयतनामा लिखा, जिसकी नकल नीचे दी जाती है। इसके अनुसार इनके मित्र बिज्जीलाल कोठी के प्रबंधकर्ता नियत हुए, परन्तु प्रबंध संतोषदायक न होने से बहुत कुछ हानि हुई। बा० गोपालचन्द के नाना बा० वृन्दावनदास तथा श्वशुर राय खिरोधर लाल ने बिज्जीलाल के विरुद्ध अदालती कारवाई की पर वसीयतनामे के कारण वे कुछ न कर सके। बा० गोपालचन्द दो वर्ष बाद स्वयं ही सब कार्य देखने लगे, जिससे फिर कोई कुछ गड़बड़ न कर सका। ८७ वर्ष पहिले की अदालती हिन्दी का नमूना होने से यहाँ इस वसीयतनामे की प्रतिलिपि दी जाती है। श्री गिरिधर लाल जी सहाय श्री ठाकुर जी स्टाम्प आठ आना मुहर अदालत दीवानी बनारस सन् १२१० नकल रामचन्द्र नायब मुहाफिज दफ्तर बमुकाबलः महम्मद अली असल नकल मुताबिक लि० हरखचन्द बेटा बाबू फतेहचन्द साह के पोता अमीचन्द साह के अगरवाले आगे हमने अपने होसहवास सों शरीर अनित जान कर अपना वसीयतनामा इस भाँति किया कि जहां ताई श्री जी हमको अच्छा रखें तहाँ ताई हम मालिक हैं बाद हमारे बेटा हमारा चि० गोपालचन्द मालिक देना लहना जायदाद हियाँ व दिसावर की माल असबाब मनकूला गैर मनकूला थावर जंगम