पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/५३

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४० भारतेंदु हरिश्चन्द्र कर खोल दिया और सब कबूतरों को, जो संख्या में कई सौ थे तथा बहुमूल्य थे, उड़ा दिया। रायसाहब के सोना गुलाम ने, जो इन्हीं कबूतरों पर नौकर था, बड़ा क्रोध किया और इन्हें मारने के लिए दौड़ा । यह भागकर हाँफते हुए अपने पिता बा० हर्पचन्द के पास पहुँचे, जिन्होंने इनकी रक्षा की और इन्हें धमकाया भी। इनकी इस चपलता से उदास चित्त होकर यह इन्हें साथ लेकर गोस्वामी गिरिधर लाल जी महाराज के पास गए और यह वृत्तान्त उन्हें सुनाया । महाराज ने कुछ मुस्करा कर कहा कि इसके औद्धत्य से तुम दुखी मत हो, शिक्षा के लिए भी अधिक क्लेश मत उठाओ, यह आपही अच्छा विद्वान और कवि होगा तथा तुम्हारे वंश का नाम बढ़ावेगा। वास्तव में किसी धनाढ्य पुरुष के एकमात्र पुत्र का लालन- पालन कितने लाड़-चाव से होता है यह सभी जानते हैं । उस पर यह ग्यारह वर्ष ही की अवस्था में पितृ-स्नेह से बंचित हो गये थे। दो वर्ष बाद ही यह अपने प्रभृत ऐश्वर्य की देख-रेख तथा प्रबंध करने में लग गये । इस प्रकार इनकी शिक्षा का कुछ भी प्रबंध न हो सका, पर अपने गुरुवर के आशीर्वाद तथा सहवास से इनकी प्रतिभा ऐसी विकसित हुई कि नियमपूर्वक शिक्षा न प्राप्त करने पर भी यह संस्कृत तथा भाषा के अनुपम विद्वान हुए तथा दोनों ही के सुकवि हुए । 'यौवनं धन संपत्तिः प्रभुत्वम्" रहते भी अविवेकता का लेश भी नहीं था और यह ऐसे सच्चरित्र थे कि लोग इन पर भक्ति रखते थे। काशी के कमिश्नर मि० गबिन्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि बा० गोपालचन्द्र 'परकटा फरिश्तः है।' यह बड़े ही सरल स्वभाव के थे और इन्हें क्रोध कभी नहीं आता था। यह गवर्नमेंट के विश्वासपात्र थे इसी से बड़े बलवे के समय बनारस रेजीडन्सी का कीमती सामान इन्हीं के यहाँ रखा