पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/५४

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पूर्वज-गण गया था। आर्स ऐक्ट पास होने पर इन्हें तलवार बन्दूक मिला कर ४८ शस्त्र रखने की आज्ञा मिली थी। विद्या की इनकी अभिरुचि ऐसी थी कि प्रचुर धन व्यय करके इन्होंने अपने घर सरस्वती-भवन स्थापित किया था जिसमें बहुत से अलभ्य तथा अमूल्य पुस्तकों का संग्रह है। इन ग्रंथों का पहाड़ बना कर तथा उस पर सरस्वती जी की मूर्ति स्थापित कर आश्विन शुल्का सप्तमी से नवमी तक उत्सव मनाया जाता था। इस पुस्तकालय का मूल्य भारतेन्दु जी को डा० राजेन्द्रलाल मित्र एक लाख रुपये दिलवाते थे, पर इन्होंने नहीं दिया। इनकी कवित्व शक्ति जन्मसिद्ध थी और प्रतिभा ईश्वरप्रदत्त थी । यही कारण था कि शिक्षा, मनन तथा अभ्यास की कमी होते भी तेरह वर्ष की अवस्था ही में इन्होंने वाल्मीकीय रामायण से बड़े ग्रंथ का छन्दोबद्ध भाषानुवाद सं० १६०३ वि० में समाप्त कर दिया था। संस्कृत में कई स्तोत्र आदि लिखे हैं, जो प्रसिद्ध हैं। ये उर्दू को भी कविता करते थे, पर बहुत कम करते थे। उर्दू की इनकी केवल दो ग़ज़लें मिली हैं। एक शैर में आप कहते हैं- दास गिरधर तुम फ़कत हिन्दी पढ़े थे खूब सी। किस लिये उर्दू के शायर में गिने जाने लगे । इनकी कृतियों की विवेचना आगे की जायगी। इनमें धार्मिक तथा सामाजिक विचार कैसे थे, इस पर भारतेन्दु जी ने स्वयं अपने 'नाटक' नामक ग्रंथ में लिखा है जिसका कुछ अंश उद्धृत किया जाता है । 'उनके सब विचार परिष्कृत थे कि वैष्णव व्रत पूर्ण के हेतु अन्य देवता गात्र की पूजा और व्रत घर से उन्होंने उठा दिया था। लेफ्टिनेन्ट गवर्नर टौमसन साहब के समय काशी में लड़कियों का जब पहिला स्कूल