पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/५५

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४२ भारतेंदु हरिचन्द्र हुआ तो हमारी बड़ी बहिन को इन्होंने उस स्कूल में प्रकाश्य रीति से पढ़ने बिठा दिया। यह कार्य उस समय में बहुत कठिन था, क्योंकि इसमें बड़ी ही लोक-निन्दा थी। हम लोगों को अंग्रेजी शिक्षा दी । सिद्धान्त यह कि उनकी सब बातें परिष्कृत थीं और उनको स्पष्ट बोध होता था कि आगे काल कैसा चला आता है।" कविता तथा भगवत्सेवा का इन्हें व्यसन सा था। यह बहुत सवेरे उठते तथा नित्य कृत्य से निवृत्त होकर कुछ कविता लिखते थे । यदि बीच ही में कुछ ध्यान आ गया तो उसे लिखकर तब दूसरा कार्य करते। कम से कम पाँच भजन बनाए बिना भोजन नहीं करते थे । कविता से निपट कर श्री ठाकुर जी की सेवा में स्नान करते तथा पूजन करते। इसके अनंतर श्री मुकुन्दराय जी का दर्शन करने जाते और लौट कर कविता लिखते । दस ग्यारह बजे भोजन करने के बाद दरबार लगता और घर का काम काज देखा जाता था। दोपहर को कुछ देर सोते और उसके उपरांत तीसरे पहर के दरबार में कवि कोविदों का आदर सत्कार तथा काव्य चर्चा होती थी । इस प्रकार इनका प्राय: समग्र दिन -पूजा तथा कविता लेखन में बीतता था। इन्हें पुष्पों का बड़ा शौक़ था। सध्या तथा रात्रि में भी जहां क़लम काग़ज़ रक्खा रहता वहाँ गुच्छे गजरे भी रक्खे रहते थे। पानदान, इत्रदान, के पास सुगधित शमःदान भी रहता था। रात्रि में भी कुछ कविता करते थे। चौखंभा वाले अपने मकान में श्री ठाकुर जी के मंदिर के पीछे उन्हीं के निमित्त एक पाई बाग बनवाया था और बीच-बीच में छोटी- छोटी नालियाँ बना कर उसमें फुहारे लगवाये थे। बाग़ का भी इन्हें शौक था। और इसी से रामकटोरा वाले बारा के सामने सेवा-प