पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/५७

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भारतेंदु हरिश्चन्द्र मेटि देव देवी सकल, छाँड़ि सकल कुल रीति । थाप्यो गृह में प्रेम जिन, प्रकट कृष्ण पद प्रीति ॥ इनके सरल स्वभाव तथा श्री ठाकुर जी में अनुराग ही के कारण तत्कालीन साधु, महात्माओं की भी इन पर कृपा रहती थी और यह भी उनकी सेवा सश्रुषा कर उन्हें प्रसन्न रखते थे राधिकादास जी, रामकिंकरजी, तुलसीराम जी, भगवतदास जी आदि उस समय के प्रसिद्ध महात्मा थे। यह लोग रामानुजी संप्रदाय के संत थे और इनसे बहुत स्नेह रखते थे। एक दिन बा० गोपालचन्द्र जी ने विनोद में किसी महात्मा से कहा कि भगवान श्री कृष्णचन्द्र में भगवान श्री रामचन्द्र से दो कलाएँ अधिक थी अर्थात् इनमें सोलहों कला थी। उक्त महानुभाव ने उत्तर दिया 'जी हाँ, चोरी और जारी ।' कभी-कभी इन महात्माओं की कथा भी बड़े समारोह के साथ इनके यहाँ होती थी। बुढ़वा मंगल का मेला यह भी अपने पिता के समान ही बड़े समारोह से मनाते थे। जाति-भाइयों को निमंत्रित करते और उन लोगों में गुलाबी रंग के पगड़ी दुपट्टे वितरित करते थे। एक वर्ष की घटना है कि यह कच्छे के साथ के बजड़े में सन्ध्या-बन्दन कर रहे थे और छत पर लोग बैठे हुये थे। सन्ध्या से निवृत्त होकर यह ज्यों ही ऊपर आए कि सभी लोग प्रतिष्ठा के लिए खड़े होकर एक ओर हो गये । इस कारण नाव एकाएक एक ओर कुल बोझ आ जाने से उलट गई और सभी लोग जलमग्न हो गये। यह घटना चौसठ्ठी घाट पर हुई थी जहां जल बहुत गहरा है। बा० गोपालचन्द्र की बड़ी पुत्री भी उसी नाव पर थी। यह स्वयं तैरना भी नहीं जानते थे पर उस अशरण-शरण की कृपा ने सभी को बचा लिया। यहाँ तक कि सब दबी हुई वस्तु, घड़ी यंत्र आदि भी मिल