पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/६०

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पूर्वज-गण थे और इनकी प्रतिमा भी अलौकिक थी। इन्होंने अलंकार, रस आदि पर रीति ग्रंथ भी लिखे हैं। कविता करने का इनका अभ्यास इतना बढ़ा चढ़ा था कि सत्ताईस वर्ष की छोटी अवस्था ही में मृत्यु हो जाने पर भी इसी बीच इन्होंने बीस सहस्र से अधिक पद बना डाले। यह सह्रदय भी थे पर इनकी कविता में विद्वता तथा काव्यकला का जितना परिचय मिलता है उतना इनकी सरलता का नही मिलता। संस्कृत के सुप्रसिद्ध विद्वान पं० शिवनाथ जी मनीषनंद ने स्वा० बाबू कृष्णचन्त्र जी इनसे भी कुछ कविता सुनकर कहा था कि यह हिन्दी में नैषध की कोटि की कविता करते थे। अस्तु, अब इनकी कविता के विषय में विशेष न लिख कर इनकी रचनाओं का विवरण देते हुए उनमें से प्रधान पर कुछ विवेचना लिखी जायगी। बा० गोपालचन्द्र को प्रथम ही पार्वती देवी से चार सन्ताने हुई थीं जिसके नाम अवस्थानुसार मुकुन्दी बीबी, बा० हरिचन्द्र बा० गोकुलचन्द्र तथा गोबिन्दी बीबी था । प्रथम कन्या का विवाह इन्होंने स्वयं साहू घराने के प्रसिद्ध धनाढ्य तथा संम्रांत रईस बा० जानकीदास के द्वितीय पुत्र बा० महावीर प्रसाद से किया था। इन्हीं महाबीरप्रसाद के बड़े भाई राजा जी थे जिसके यहां गिन्नयां सुखलाई जाती थीं, गलाए हुये बहते सोने में कागज की नाव चलाई जाती थी इत्यादि । इस प्रकार की अनेक कथाएँ इसके विषय में सुनी जाती हैं । ये दोनों भाई निस्संतान मर गये और इनकी लाश समाप्त हो गया, जिससे अतुल धन की स्वा- मिनी होते हुए भी मुकुन्दी बीबी अपने पिता के घर पर आकर रहने लगीं। अन्य तीनों संतानों का विवाह पीछे से हुआ था, जिसके प्रबंधक इन लोगों के फूफा राय नृसिंह दास थे। भारतेंदु जी का विवाह शिवाले के रईस बा० गुलाबराय की कन्या श्रीमती