पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/६१

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४८ भारतेंदु हरिचन्द्र मन्नो देवी से, बा० गोकुलचन्द का बा० हनुमानदास की कन्या श्रीमती मुकुन्दी देबी से तथा गोबिन्दी बीबी का पटना के रईस राधाकृष्णदास रायबहादर से हुआ था । केवल बीच को छोड़- कर अन्य दोनों विवाह बड़े धूमधाम से हुए थे। गोविन्दी बीबी के एकमात्र पुत्र राय गोपीकृष्ण बी० ए० पचीस वर्ष ही की अवस्था में काल कवलित हो गये थे। प्रथम स्त्री पार्वती देवी की मृत्यु पर उसी वर्ष सं० १६१४ के फाल्गुन में बा० गोपालचन्द्र ने बा० रामनारायण की कन्या श्री मती मोहन बीबी से दूसरा बिबाह किया, जिससे इन्हें दो संताने हुई पर कुछ ही दिन की होकर जाती रहीं। मोहन बीबी की मृत्यु माघ कृ००० सं० १९३८ को हुई थी। रचनाएँ पूज्यपाद भारतेन्दु जी का एक दोहा इस प्रकार है- जिन श्री गिरिधरदास कवि, रच्यो ग्रंथ चालीस । ता सुत श्री हरिचंद को, को न नवावै सीस ।। इससे इतना पता लगता है कि बा० गोपालचन्द्र जी ने चालीस ग्रंथ लिखे थे, जिनमें कुछ का अस्तित्व है, कुछ का नाम ज्ञात है और बाकी का कुछ भी पता नहीं है । जिनका अस्तित्व है, उनका परिचय पहले दिया जाता है । १-जासंध-वध महाकाव्य-यह बीररसपूर्ण महाकाव्य है, जिसके केवल साढ़े दर्ग प्राप्त हैं । इस अपूर्ण ग्रंथ को भारतेन्दु जी ने सं० १६३१ तथा ३२ में सं० १८७५ की हरिश्चन्द्र चंद्रिका खण्ड दो में निज यंत्रालय में लीथो में छापकर प्रकाशित किया था। इसके अनंतर पूरे पचास वर्ष बाद इसका दूसरा संस्करण श्री कमलमणि ग्रंथमाल कार्यालय काशी द्वारा प्रकाशित किया