पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/६४

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पूर्वज-गण २-भारती भूषण-यह अलकार का एक अत्युत्तम ग्रंथ है। इसमें एक-एक दोहे में लक्षण तथा एक-एक में उदाहरण दिया गया है इससे लक्षणों का अच्छी प्रकार स्पष्टीकरण हो गया है। इसमें ३७८ दोहे हैं। जो हस्तलिखित प्रति मेरे सामने है वह -स'० १६१० की लिखी हुई है। यह कवि के समय की लिखी हुई है, इससे यह ज्ञात होता है कि इस ग्रंथ का रचनाकाल भी वही है। इसकी एक छपी प्रति भी है जो पचास या साठ वर्ष पुरानी है । उदाहरण के लिये दो दोहे उद्धृत किए जाते हैं। असगति अल कार का लक्षण और उदाहरण- काज हेतु इन दुहुँन को असंभाव्यता यत्र । अति विरुद्ध जानी परै प्रथम असंगति तम्।। सिंधु जनित गर हर पियो मरे असुर समुदाय । नैन बाल नैनन लग्यो भयो करेजे घाय ।। ३-भाषा व्याकरण-भाषा के पद्य विषयक कुछ नियमों का विचार इस में पद्य में किया गया है। यह पुस्तक खडग विलास प्रेस में सन् १८८२ ई० में छपी थी। इसमें १२५ पद हैं उदाहरण- बहुधा कवि की रीति हलतहि ठकारान्त करे। बरनहि पै नहि अपर अर्थ जहँ होइ तहाँ पर। रामहि जैसे रामु होइ धन धनु नहिं होई। राम रामु दोउं शुद्ध अशुद्ध सुधनु है सोई ।। यह हस्व उकरांत है लखौ सब विभक्ति में सुबुध जन । सोउ एक वचन में होत है त ह न होत जहँ बहुबचन ॥ ४-रस रत्नाकर इसमें हाव भावादि का वर्णन है। यह अपूर्ण था और भारतेन्दु जी ने इसे पूर्ण करने के विचार से हरिश्चन्द्र मेगज़ीन में निकालना आरम्भ किया। इसका