पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/६७

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भारतेंदु हरिश्चन्द्र १२-राम कथामृत-यह एक विषद् ग्रंथ १००१ पदों का है। इस ग्रंथ में रामजन्म के अश्वमेध यज्ञ तक की कथा का वर्णन किया गया है। इसकी रचना का समय नहीं दिया हुआ है। यह केशवदास की रामचन्द्रिका की रीति पर अनेक छंदों में प्रणीत है। ये सातो कथामृत 'अवतार कथामृत' के नाम से नवलकिशोर प्रेस से छपे थे। दूसरे खंड में अन्य तीनों कथामृत छपने को थे। उदाहरण- हाथी घोरा बैठे जोधा नाना बानै त्यागे हैं। ते लौ धौ लौ के भाई के देहैं जाके लागै हैं ।। राजा की सो सेना भारी चारो आसा सों धाई। राका राज लोपै कों ज्यों मेघों की औली आई ।। १३-बलराम कथामृत-यद्यपि इसके नाम से बलराम जी की कथा का वर्णित सेना ज्ञात होता है पर वास्तव में कृष्ण चरित्र ही प्रधान है और उसके साथ साथ उनके बड़े भाई का चरित्र वर्णन अवश्यंभावी है। बलराम जी दशावतार में परिगणित नहीं हो सकते और सब कथामृत एकत्र दशावतार कथामृत के नाम से प्रसिद्ध है। आपने श्रीकृष्ण जी के लिए बलवंधु शब्द बहुत प्रयोग किया है तथा वे बड़े भाई थे स्यात् इसलिये उन्हीं के नाम की प्रधानता दिखलाने को ग्रंथ का नाम यह रखा है। इस ग्रंथ में ४७०१ पद हैं। ब्रजलीला, प्रवास लीला तथा द्वारिका जी की लीला सभी क्रम से वर्णित हैं। ब्रजलीला के अंतर्गत १३२ छंदों में नखशिख का वर्णन करते हुए अंग-प्रत्यंगों के साथ साथ आभूषणादि शृङ्गार, हावभाव, सुकुमारता आदि विषय भी अत्यंत सुचारु रूप से कहा गया है । आठ पटरानियों के विवाह आदि का भी वर्णन अच्छी प्रकार किया गया है। महाभारत की कथा भी संक्षेप में आ गई है । १२० पदों में बलराम जी की यात्रा