पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/६९

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भारतेंदु हरिश्चन्द्र १४-बुद्ध कथामृत—यह २५ पदों की एक छोटी सी पुस्तिका है। यह कार्तिक सुदी १३ की रचना है। संवत नहीं दिया हुआ है पर १६०६ की रचना है। १५-कल्कि कथामृत-~-यह भी २५ पदों की छोटी पुस्तिका है। यह कार्तिक सुदी १४ को रची गई है। इसमें भी संवत् नहीं दिया है पर १६०६ ही की यह रचना है। १६-नहुष नाटक-भारतेन्दु जी ने लिखा है कि यह हिन्दी का पहिला नाटक है । यह अपूर्ण था पर जितना था उसका 'भी थोड़ा अंश बच गया है । बा० गदाधर सिंह कहते थे कि उन्होंने इस नाटक की पूरी प्रति कन्हैयालाल लेखक के यहाँ देखी थी और नवलकिशोर प्रेस जाकर वहाँ से गुम हो गई थी। सन् १८४१ ई० में जब भारतेन्दु जी नौ वर्ष के थे तभी यह नाटक लिखा गया था। इसका प्रथम अंक कवि बचन सुधा के पहिले वर्ष की एक संख्या में बा० राधाकृष्ण दास के संयोग से मिल गया था, जिसे उन्होंने प्रकाशित कर दिया था। इस नाटक में संस्कृत के चाल पर पद्य का आधिक्य है। केवल प्रस्तावना तथा प्रथम अंक ही में एकसठ पद हैं। सूत्रधार की बात ही को लेकर नाटक आरम्भ होता है इसके प्रथम अंक में बृत्रासुर वध का वर्णन तथा इन्द्र को ब्रह्महत्या लगना दिखलाया गया है। गद्य की भाषा साधारण बोल चाल की है। उदाहरण- कार्तिकेय—यह सुनि प्रनाम करि सब देवता दधीच पै जाय हाथ जोरि कहन लागे। "जय मुनि मंडल धरम धर पर उपकारक भाई। दीन बन्धु करुना सदन साधहु सुर को कार्य ॥" १७-गर्ग संहिता-संस्कृत गर्गसंहिता तथा अन्य ग्रंथों की कथाओं का सार लेकर इसकी रचना की गई है। यह गोलोक,