पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/७

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कि उनसे हम मनुष्य के वाह्य स्वरूप के साथ साथ उनके हृदयस्थ भावों तथा विचारों को भी जान सकते हैं और उनके पठन से वे मजीब के समान कष्ट में सहानुभूति दिखलाते हुए तथा आनन्द में सहयोग देते हुए पाए जाते हैं। साथ ही ये ग्रंथ सब को समान रूप से प्राप्य हैं, और वे उनसे लाभ उठा सकते हैं। संसार में वे ही अमर हैं जिन्होंने सत्काव्य रचे हैं या जिन लोगों ने सत्क- वियों को आश्रय दिया है। इस समय जिन प्राचीन लोगों के नाम मनुष्य के जिह्वान पर रहा करते हैं, उन दानवीरों, अवतारों,महा- स्माओं आदि का पता सग्रंथों ही से हम लोगों को चल रहा है। किसी कवि ने ठीक कहा है कि- वल्मीकप्रभवेण रामनृपतिासेन धर्मात्मजो, व्याख्यातः किल कालिदासविना श्रीविक्रमांको नृपः । भोजश्चितपविल्हणप्रभृतिभिः कोऽपि विद्यापते: , ख्यातियन्ति नरेश्वराः कविवरैः स्फारैर्नभेरीरवैः ।। मनुष्य स्वभावतः समाजप्रिय है और यही कारण है कि वह सर्वदा मनुष्य ही के विषय में विचार-रत रहता है। किसी भाषा के समग्र साहित्य को देखिए सभी में मनुष्य तथा उसकी कृति और विचार भरे हैं । इसलिए सुलिखित जीवनचरित्र के पढ़ने में, देखा जाता है कि मनुष्य को सबसे अधिक आनंद मिलता है। कहा- नियों तथा उपन्यासों में मनगढंत कल्पित चरित्र-चित्रण होने से उनसे अधिक मनोरंजन होता है, और नाटकों में भी इसी कारण अधिक तमाशाई इकट्ठे होते हैं। इतिहास भी सैकड़ों मनुष्यों की जीवनियों का संग्रह मात्र है। बड़े-बड़े सत्काव्य आदर्श नायकों के चरित्र ही चित्रित करते हैं, जिन्हें लोग बड़े प्रेम से सुनते हैं।