पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/७०

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'पूवज-गण वृन्दाबन, गिरिवर, माधुरी, मथुरा, द्वारावती, विश्वजित, हलधर और विज्ञान नामक नौ खंडों में विभक्त है। यह रामायण की चाल पर दोहों और चौपाइयों ही में लिखा है। कहीं कहीं अन्य छन्द भी मिलते है। यह ग्रंथ सं० १६१४ के भाद्रपद कृष्ण १३ बुधवार को समाप्त हुआ था । यह ग्रंथ सं० १६१५ में छपी थी। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह ग्रंथ सं० १६०५ में ही आरम्भ हो गया था। नवलकिशोर प्रेस द्वारा यह सम्पूर्ण ग्रंथ सन् १८६८ ई. में प्रकाशित किया गया था, जिसमें ४७८ पृष्ठ में २४ पक्तियाँ हैं उदाहरण- गज सम बुन्दी लगे बरसावन । गरजि गरजि धन घोर मचावन ॥ धार सकल सहतीर समाना । बात लड़ावत बिटप मकाना ।। तड़ तड़ तड़ित टूटि भहि परई । अनंर शंह कठोर कड कलई ।। भयो भयंकर शब्द दिसन में ! सूझि व बूझि परै भाछन में । भारत है ..सिगरे एजवंसीं। बंदे कृष्ण चरन सुखरासी ।। तुम्हरे भाषे हन गिरिहि, पूज्यो ऋतु कहँ त्यागी । रच्छहु अब यह कोप तें, जाहिं कहाँ सब भागी।। १८-एकादशी माहात्म-आरम्भ में एकादशी व्रत किस प्रकार किया जाना चाहिए यह बतलाकर चौबीसों एकादशी बारह महीनों की तथा दोनों पुरुषोत्तम मास की एकादशियों की महिमा बतलाई गई । यह कुल ग्रंथ रोगों में है। यह ग्रंथ भारतेन्दु जी की आज्ञा से उनके मित्र कुँअर जाहरसिंह ने सं० १९२५ में 'छपवाया था' यह कथा के पत्रों के आकार में ४६ पृष्ठों में है और प्रत्येक पृष्ठ में पक्तियां हैं। रचना-कला नहीं दिया गया है। उदारण- बोले धरम सुनो यह बानी । औसिन प्रथम एकादशि कहिगै 'गिरिधर लाल' जगत मुददानी ।।