पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/७१

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भारतेंदु हरिश्चन्द्र बाबू कहत स्याम है नाम इन्दिरा पितरन सुख खानी। बाजपेय फल मिलय सुनन सों सो हम बरनत तुमहि कहानी ।। १६-प्रेम तरंग-यह पुस्तक मल्लिककंद्र और कम्पनी तथा ए० के० ब्रदर्स द्वारा प्रकाशित हुई ग्रंथ कर्ताओं में स्वर्गीय श्री० बाबू गोपाल चन्द्र उपनाम गिरधरदास जी तथा भारतेन्दु हरिश्चन्द का नाम इसमें ६४ पृष्ठ और ३६१ पद हैं, जिसमें गिरधर दास के २३, बाबू हरिश्चन्द्र के २०४ और ४४ 'चन्द्रिका' उपनाम के हैं। अंतिम ३४ बँगला के हैं। इसकी एक और प्राचीनतर प्रति मिली है, जिसमें केवल १८० पद हैं। इसमें बँगला पद बिल्कुल नहीं हैं। उदाहरण- तुम बिनु पतित पावन कौन ? तनक ही सब दोष मेट सुनो राधा रौन ।। और सुर की करै पूजा तुम हिंत जिसे जौन । 'दास गिरिधर' कूप खोदत गग तट पर तीन ।। २०-ककारादि सहस्त्रनध्म-संस्कृत भाषा में कृष्ण भगवान के एक सहस्त्रनामों को श्लोकवद्ध किया है जिसमें प्रत्ये क नाम 'क' से आरम्भ होता है। दो सौ दस श्लोक हैं। अन्तिम दो श्लोक में रचना का समय आदि यों दिया है- गिरिधरदास नामि विरंचित कृष्णनामवरणभिः खचिंस । हरमिथ्द बहते यः कठे तस्य रतिःस्यात् मौस्तुभकठे ॥ ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे चतुर्दश्याम् खो दिने। सम्पूर्ण भगवनाम सहस्त्रं केशवस्य तु ।। इसमें संवत् नहीं दिया है पर जो छपी प्रति मेरे सामने है वह 'संवत् १६०७ श्रावण कृष्ण पंचम्यां चन्द्रवासरे' को सुधार कर यंत्रालय से प्रकाशित हुई थी।