पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/७२

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५६ पूर्वज-गण २१-कीर्तन के पद -इसकी केवल एक हस्तलिखित 'रफ; प्रति मिली है, जिसमें ६२ पद हैं। इनमें परज, विहाग, भैरवी आदि अनेक राग-रागिनीं हैं। ब्रजभाषा तथा खड़ी बोली दोनो ही में पद रचे गये हैं। उदाहरण- चोरी दही मही की करना, घर घर घूमना, हो लाल । पर नारिन सों नेह लगाना, सुंदर गीत मनोहर गाना ।। यमुना तट ग्वालन को लेके घूमना, हो लाल । मटुकी के कर टूक पटकना, अँचरा गहि गहि हाथ झटकना । उझकि उझकि उर लाय मुख चूमना, हो लाल । 'गिरिधरदास' कहै हम जाना तुमने सुख इस ही में माना । निडर होय गोकुल में मुकि झुकि झूमना हो लाल । २२–मलार के पद-सं० १६.३ वि० की लिखी एक हस्त- लिखित प्रत में मलारों के दो छोटे छोटे संग्रह हैं। एक में २८ और दूसरे में २४ पृष्ठ हैं। मल्लार राग ही के कीर्तन के पद इसमें विशेषतः संगृहीत हैं। उदाहरण- देखो सखि पावस भूपति आयो । कारे कारे धन' हाथी दल लीने डंका गरजि बजायो॥ मोतीलाल धरे बकमाला धनगन जल बरसायो। इन्द्रधनुष कर धनुष बिराजत बिजुरी सुहायो ।। दादुर मागधसूत पुकारत मोरन नाच नचायो । हरी करी सगरी धरनी कह जीवन बास बसायो ।। मए नए पत्र तरुन को दीने रजगन धोय बहायो। सूर तेज को लोपन कीनी ग्रीसम ताप नसायो । सीतलसखा समीर सुगंधित वृज जन पास पठायो । गिरिधरदास पास प्रभु क्रीड़न कारन पायो सब मन भायो ।