पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/७३

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। पूर्वज-गण ६१ गया है पर भारतेन्दु जी का उससे तात्पर्य नहीं है। यह बाला- बोधिनी में प्रकाशित हुई थी, जिसका शीर्षक 'नीति विषयक इतिहास' रखा गया है। यह हितोपदेश का अनुवाद है। इसकी भाषा बड़ी ही सरल प्रौढ़ तथा विषय के अनुकूल ही है। उदाहरण- इमि धक कीनी दुष्टता बृथा कलह अज्ञान । गयो हंस को राज सब पर पच्छी सनमान । जो पर पच्छी पुरुष को मनुज करत बिस्वास । सो पावत द्रुत नास है जानहु गिरिधर दास ।। पूर्वोक्त रचनाओं के सिवा संकषणाष्टक, रामाष्टक, कालिय- कालाष्टक, दनुजारिस्तोत्र, रामस्तोत्र, शिवस्तोत्र, गोपालस्तोत्र, राधास्तोत्र, भगवत स्तोत्र और बारहस्तोत्र दस स्तुतियों का संग्रह कवि लक्ष्मीरामकृत सस्कृत टीका सहित बा० राधाकृष्णदास जी को मिला था, पर उन्होंन उनमें से किसी का एक भी उदाहरण नहीं दिया है। इस प्रकार यद्यपि अब प्रायः इनकी सभी रचनाओं के नाम मिल गये हैं पर केवल आधे के लगभग ग्रंथों का विवरण स्वयं देख कर दिया जा सकता हैं। हरिश्चन्द्र चन्द्रिका (सन् १६७८ दिसम्बर की संख्या ) में चालीस पद का एक संग्रह, जिनमें सवैया, कवित्त, छप्पय, कुंडलियाँ ही हैं, प्रकाशित हुआ था। इस प्रकार देखा जाता है, इनकी कविताएँ इधर उधर पड़ी हुई हैं और इनके धनाढ्य उत्तरा धिकारियों में से आज तक किसी ने भी उनका उद्धार करना अपना कर्तव्य नहीं समझा, केवल 'अपव्ययी' भारतेन्दु जी ही जो कुछ कर सके थे वही अब तक हुआ है। पूर्वजों के धन बाँटने तथा यश के साझी होने में सभी आगे बढ़े रहते हैं पर तथा