पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. आदर्श वोरों, महात्माओं, महाकवियों आदि के सच्चे जोवन- चरित्र से जो अलभ्य लाभ हम उठा सकते हैं, वह अवास्तविक कल्पना-प्रसूत कथानकों से कभी नहीं प्राप्त कर सकते, क्योंकि एक सत्य है और दूसरा असत्य । उन महान पुरुषों के दुःख सुख के अनुभवों को, कठिन समय के कार्यों को तथा विचारों को अपना आदर्श बना सकते हैं। जीवनचरित्र कभी पुराने नहीं हो सकते । सत्ययुग के हरिश्चन्द्र और त्रेता के रामचन्द्र के चरित्र आज तक सब के लिये अनुकरणीय हैं। जीवनचरित्र यह भी उपदेश देता है कि मनुष्य क्या हो सकता है और क्या कर सकता है। एक महान व्यक्ति की जीवनी पाठकों के उत्साह, आशा, शक्ति और साहस भर देती है. और उन्हें उस आदर्श तक उठने को प्रोत्साहित करती है। साहित्य का इन कारणों से जीवनचरित्र एक विशेष अंग है पर हिन्दी में ऐसे जीवन-चरित्रों की बहुत कमी है । हिन्दी साहित्य के इतिहास में सर्वोत्तम नौ कवि चुने गर हैं, जिनमें आठ सरस्वती के वरपुत्र ब्राह्मण हैं और एक इन्हीं भार- तेन्दु जी ने उस रिजर्व क्षेत्र' में जाकर 'मदाखल त बेजा' किया है । इन भारतेन्दु जी को सबसे पहिली जीवनी उनके देहांत पर. उनके परम मित्र पं० रामशंकर व्यास जी ने चंद्रास्त के नाम से प्रकाशित की थी। इन्हों ने बड़ी जोवनी लिखने का भी विचार किया था और सन् १८६४ ई. के पत्रों में सूचना निकाली भी. थी कि जिनके पास भारतेन्दु जी की जीवनी के लिये उपयुक्त सामग्री हो वे उसे उनके पास भेजें या पत्रों में प्रकाशित कर दें.. पर चन्द्रास्त के बाद वे कुछ न लिख सके । भारतेन्दु जी के फुफेरे भाई स्व० बा० राधाकृष्णदास जी ने सं० १६०० में निकलनेवाली सरस्वती के प्रथम भाग में भारतेन्दु जी की एक