पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/८६

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भारतेंदु हरिचन्द्र सिंह जी की सूर्य भगवान से तुलना करते हुए तेरह दोहे लिखे थे। दो तीन यहाँ दिए जाते हैं। यदपि दिवाकर बस में प्रगटे परम प्रसंस । तदपि गुनन मे सुनन में बाहू के अवतंस ।। दिन प्रकास अवकास है रजनी निलय निवास । सकल समय भय सों रहित नयसों सहित विलास ।। उत अँधेर चारों पहर इत चहुँ जाम प्रकास । इहाँ एक रस रहत है महत मरीच मवास ॥ सं० १८४१ वि० में (नवम्बर सन् १८८४ ई.) यह व्याख्यान देने के लिये बलिया निमंत्रित होकर गए थे । व्याख्यान के विज्ञापन में यह 'शायरे मारूफ बुलबुले हिन्दुस्तान' लिखे गए थे। बलिया इन्स्टीट्य ट में ५ वीं नवम्बर को तत्कालीन वहाँ के कलेक्टर के सभापतित्व में यह व्याख्यान बड़े समारोह से हुआ था। इसी उपलक्ष में सत्य हरिश्चन्द्र तथा नीलदेवी के अभिनय थे। भारतेन्दु जी उसमें उपस्थित थे और सूत्रधार द्वारा इनका नामोल्लेख होने पर दर्शकगण आकाशभेदी करतल-ध्वनि करने लगे। इससे विदित होता है कि इस प्रांत के बाबू साहब कैसे सर्वजन प्रिय हैं और लोग इनका कितना सम्मान करते थे। इस व्याख्यान का शीर्षक था-भारतवर्ष का कैसे सुधार होगा। प्रारम्भ में देश की दुर्दशा वर्णन कर स्त्री-शिक्षा, देशी वस्तु तथा विधवा विवाह के प्रचार का और बाल-विवाह आदि रोकने का उपदेश दिया है। व्याख्यान का अंत यों किया है कि 'जिसमें तुम्हारी भलाई हो वैसी ही किताब पढ़ा, वैसे ही खेल वैसी ही बात चीत करो, परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रक्खा, अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो। भी हुए खेले,